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खामोशियाँ पत्थरों की टूटेंगी
बेख़ौफ़ उनकी पीर बोलेगी।
मुमकिन है दौर गूंगा हो जाए
मुजस्सिमों की तस्वीर बोलेगी।
जुल्म तो आख़िर जुल्म है वीर
इंसाफ की तासीर बोलेगी।
सदायें मज़ारों से गाफ़िल नहीं
हकपसंदों की जागीर बोलेगी।
कह न पाई जुबां दासतां अपनी
बदन में लगी हर तीर बोलेगी।
आज तेरी कल और की होगी
मुख़ालफ़त में शमशीर बोलेगी।
उदय वीर सिंह।
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