ठहरा दिखाई देता...
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बहता दरिया प्रीत का, ठहरा दिखाई देता।
बुलबुला किस काम का सुनहरा दिखाई देता।
आगे आग और धमाके,फिर भी जा रहा है,
इंद्रियों से शायद जातक बहरा दिखाई देता।
कभी इधर तो कभी उधर नजरें घुमा रहा है,
होठों पर मुस्कराहट सदमा गहरा दिखाई देता।
हर हाथ में परोसे अब हथियार जा रहे हैं,
तालीम की दहलीज पर पहरा दिखाई देता।
गुमनाम हो रही कहीं आदमियत की तासीर,
विनाशकों का आज झंडा फहरा दिखाई देता।
उदय वीर सिंह।
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