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कुछ तो जिंदगी के गीत ,गाना सिख ले।
लुटेरों की गली सेआना-जाना सिख ले।
मंडियों में आंसुओं का,कोई मोल नहीं,
झूठ ही सही गम में मुस्कराना सिख ले ।
हो इल्मदां पर तुम्हें दाद मिलने से रही,
दर मनसबदारों के सिर झुकाना सिख ले।
आदमी को आदमी से सिर्फ प्यार इतना है
घर जले और का अपना बचाना सिख ले।
ले जाएगा ये मुकाम किस दहलीज पर,
महशर ले लिए कुछ बातें बनाना सीख ले।
उदय वीर सिंह।
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