** मेरे जज्बातों से वाकिफ है कलम मेरी,
इश्क़ लिखना चाहूँ इन्कलाब लिखा जाता है ।**
- शहीदे आजम भगत सिंह।
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शहीदे आजम तुम्हें खोकर बहुत रोया है चमन,
तेरे दीये की रोशनी आफ़ताब हो रही है।
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बर्बाद न कर सकी हिन्द को हुकूमते नामर्द,
चले मर्द मसीहा-ए-इंकलाब चमन आबाद करके।
उदय वीर सिंह।
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