रविवार, 10 अप्रैल 2022

आग शीतल नहीं होती...


 






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आग  कोई  भी  हो शीतल जल नहीं होती।

जलाती है तन-मन कभी निष्फल नहीं होती।

पाखंड और  झूठ  की आग के क्या कहने,

पाक उतनी जैसी गंगा भी निर्मल नहीं होती।

उन्माद और अहंकार की आग ही निराली है,

स्व - विध्वंश के बाद भी  निर्बल नहीं होती।

आग  ईर्ष्या व डाह की  खामोशी बेमिशाल,

जली जमीन  फिर  कभी  उर्वर  नहीं होती।

क्रोध अधर्म क्रूरता की आग का सानी नहीं,

जली मनुष्यता तो कभी उज्वल नहीं होती।

उदय वीर सिंह।

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