गुरुवार, 14 अप्रैल 2022

अप्रतिम बैसाखी




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बैसाखी की लख लख बधाई मित्रों!

बैसाखी एक सरल अद्दभुत प्राचीन होकर भी सदैव, नवीन, अप्रतिम, मोदमयी ही नहीं एक लोमहर्षक शब्द, लबों पर आते ही असीम ऊर्जा ही नहीं अनंत संभावनाओं से हृदय को भर देता है। यह शब्द धार्मिक, सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक ही नहीं बौद्धिक पयामों की सार्थकता को समग्र रूप से परिभाषित करता है। यह शब्द किसी विद्वान, सत्संगी, पैरोकार या बादशाह की दरबारी मोहब्वत या परिभाषा का कत्तई मोहताज या आश्रित नहीं। आप स्वयं इसे दिल से स्पर्श करें स्व स्फूर्त विवेचित होता चला जाता है। बैसाखी एक मानसिक उच्चतम संवेदना है, इसकी प्रशंसा में किसी नाम को उध्दृत करूँ अन्याय होगा।

  " खालसा पंथ " की साजना कर दशम पातशाह गुरुगोबिंद सिंह साहिब जी ने मानव-मात्र को धार्मिक,राजनैतिक, सामाजिक क्षितिज को नैशर्गिकता प्रदान कर सास्वत जाग्रत ज्ञान-सूर्य का अनंत आकाश दिया। समाज में व्याप्त तमाम पाखंडों, कुरीतियों, मिथकों को खंडित किया तथा  नई समरस सजग पारदर्शी निष्पक्ष राह का सृजन किया। 

" ..वाह वाह गोबिंद सिंह आपे गुरू चेला "

   परिणाम परिभाषित करने की यहां आवश्यकता नहीं सारा विश्व सिक्खी खालसा से प्रभावित, आलोकित व मुदित है। सर्वशक्तिमान देश अमेरिका द्वारा साजना दिवस " बैसाखी " को " अंतराष्ट्रीय सिक्ख दिवस " घोषित किया जाना निश्चित ही सिक्खी संस्कारों, मूल्यों को पुष्ट करता है।

सिक्खी पोषित करती है- " मानुष की जाति सब एकै पछानिबो " 

   बैसाखी खुशहाली का पैगाम लेकर आती है क्योंकि रबी मौसम की फसलों के पक कर कटाई का समय होता है। घर में धन धान्य आता है अरमान, स्वप्न पूरे होते हैं,शादी ,कुड़माई निर्माण, पढ़ाई, दवाई का पुख्ता इंतजाम कर बैसाखी घर पधारती है। आखिर दिल पलक पांवड़े बिछा स्वागत क्यों न करे।

बैसाखी सांझी संस्कृति का उद्दात स्वाभिमानी स्वरूप ही नहीं एक दर्शन है। जिसके आलोक में मानवीयता के उच्चतम स्वरूप को प्रदर्शित किया गया। आजादी की क्रूरतम हथकड़ियों बेड़ियों को चाहे मुसलमान शासक रहे या अंग्रेजी हुकूमत ,अपने अप्रतिम त्याग वलिदान संस्कारों  से बैसाखी की अमिट युगांतकारी तिथियों 13 अप्रैल 1699 खालसा पंथ (सिक्खी)  आनंदपुर साहिब व 13 अप्रैल 1919 जलियांवाला बाग  (अमृतसर )ने  अपना अकल्पनीय स्वरूप प्रदर्शित कर उच्चतम प्रतिमान स्थापित किया।

आज विश्व का कोना कोना सिक्खी स्वरूप से प्रभावित व उसके संस्कारों मूल्यों से सहमत ही नहीं अनन्य प्रशंसक है। त्याग समर्पण सेवा प्रेम की अद्दभुत मशाल बन हर अंधेरे में, हर पथ पर गुरु-सिक्खी दिखाई देती है।  हर आपदा, पीड़ा, युध्द-पीड़ितों,असहायों शरणार्थियों के दुख में भारत ही नहीं पूरी दुनियां में  यथा अमेरिका कनाडा रूस अफ्रीका आस्ट्रेलिया यूक्रेन  हंगरी पोलैंड फ्रांस जर्मनी किनियाँ फिजी आदि ...में अपनी उच्चतम सहभागिता बिना स्वार्थ, लोभ, मोह दर्ज कराती रही है। उदाहरण अनगिनत हैं। 

   विस्वास का अप्रतिम स्रोत कहीं है वह गुरु घर ही है, गर्व है हम उस गुरु घर के वारिस हैं।

  पुनः समस्त मानव जाति को बैसाखी की हृदय से बधाई व शुभकामनाएं ।

उदय वीर सिंह।

14/3/2022

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