किश्तियाँ किधर गईं पतवार किधर गए।
नदिया किधर गयी किनार किधर गए।
फरियादी खाप में लंबरदार किधर गए।
सौंपीअमानत किधर, रखवार किधर गए।
इज्जत खूंटियों पर इज्ज़तदार किधर गए।
जर्द पत्ते दरख़्तों पर सदाबहार किधर गए।
धर्म आमने-सामने खड़े,ठेकेदार किधर गए।
लथपत खून से दोनों तीमारदार किधर गए।
संहिता की पोटल सिर अधिकार किधर गए।
बाजार में खामोशी है खरीददार किधर गए।
यतिमी का उगा जंगल सरमायेदार किधर गए।
खबर की तलाश में ख़बरअखबार किधर गए।
उदय वीर सिंह।
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