मंगलवार, 10 मई 2022

बाजार हो गया


 




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कल  आंगन  था  आज बाजार हो गया।

गोपनीय  दस्तावेज था अखबार हो गया।

लगने लगी हैं  बोलियां  नींव  के ईंटों की,

कल साहूकार था आज कर्ज़दार हो गया।

धरती भी वही आसमान भी वही तालिब

कल फलदार था शज़र कांटेदार हो गया।

टूट जाएंगी वर्जनाएं कुछ इस  तरह  बेदम,

कल  कंगन  था  आज  कटार हो गया।

उदय वीर सिंह।

1 टिप्पणी:

How do we know ने कहा…
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