मांग रही बर्बादी की उस अरदास में
हम शामिल न हुए।
वंचित करती जीवन को उस न्यास में
हम शामिल हुए।
लांछित करती गरिमा को उस प्यास में
हम शामिल न हुए।
अवरोध बने परवाज़ों के, आकाश में
हम शामिल न हुए।
प्रतिदान मिलेगा क्या हमको उस आश
में हम शामिल न हुए।
अश्लील सृजन की बेदी के विन्यास में
हम शामिल न हुए।
छद्म समष्टि की गाथा उस सन्यास में
हम शामिल न हुए।
श्रम- बिंदु के कोपल कंचन के परिहास
हम शामिल न हुए।
उदय वीर सिंह।
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