शनिवार, 11 जून 2022

दिन चैन के कमतर हुए...








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आंसुओं  के ढेर  पर ही तामीर  मुर्दाघर हुए।

दीन की चाहत लिए आबाद इबादतघर हुए।

रहबरी शमशीर के हाथ जब भी काबिज हुई,

खून की नदियां बहीं दिन चैन के कमतर हुए।अपनी ही बुनियाद की मज़बूतियाँ भी देखना

पत्थर लगे थे शोध कर हिलने लगे जर्जर हुए।

न सहेजा न तराशा सब आकर्षण चला गया,

दामन भरे थे फूल से कैसे हाथ में पत्थर हुए।

जन्मदात्री है बिखराव की गुरुत्वाकर्षणविहीनता

जो  ग्रह  थे परिक्रमा में टूट  तीतर-बितर हुए।

देख लेते एक बार अपने घर की गिरती दीवार

बंद आंखें मुस्कराते रहे घर कंगूरे खंडहर हुए।

उदय वीर सिंह।

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