सोमवार, 25 जुलाई 2022

पत्तों की मुखबिरी


 




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पत्तों की  मुखबिरी  से माली भी डर रहा है।

दरबारियों की फ़ितरत सवाली भी डर रहा है।
जमाने से दर -बदर वो  इंसाफ  मांगता है,
पाए तो पाए कैसे हाथ खाली जो डर रहा है।
इन हवाओं का क्या भरोषा बहने लगें किधर,
उनके  तेजाबीपन  से मवाली भी डर रहा है।
कीचड़ भरी हैं सड़कें रकीबों से  भरे दयार
बेहूरमतों की दहशत जलाली भी डर रहा है।
उदय वीर सिंह

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