शमशीर नींद से जगाने नहीं आयी।
तीर कभी कमान से लुभाने नहीं आयी।
आयी तो बे-मुरौअत अकेने नहीं आयी,
पीर किसी को लोरी सुनाने नहीं आई।
मन को रौंदती रही गुरबति की जूतियां,
जंजीर तन को मुक्त कराने नहीं आयी।
दूरियां मज़बूरियाँ, दहशत कायम रहे,
प्राचीर दर बराबरी निभाने नहीं आयी।
उदय वीर सिंह ।
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