उज्वल पथ गंतव्य सुघर गुरु
सास्वत नेह तुम्हारा है।
वीथी समस्त मधुमय सबल
कली किसलय पात संवारा है
अंबर अनंत दृग बहु विशाल
सूक्ष्म तत्व के विश्लेषक,
स्पंदन संवेदन मर्म अनुभूति
गुरु आश्रय प्रेम की धारा है।
प्रज्ञा यश पौरुष कर्तव्य-प्रणेता
न्याय नीति का अनुशंसक
क्षमा दया करुणा में शीतल
कामी वंचक को अंगारा है।
अंधड़ झंझावात काल दुर्दिन
की धार निराशा में,
प्रलय की निर्मम नदिया में
गुरु पावन सरस किनारा है।
उदय वीर सिंह।
59।22
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें