नफ़रत से मोहब्बत कहाँ खरीद पाओगे।
सिर्फ रक़ीब ही मिलेंगे मुरीद कहाँ पाओगे
आंखों से जहालत का चश्मा जो नहीं उतरा
गरीबों के अंजुमन में गरीब कहाँ पाओगे ।
न पा सका मीरा सूर तुलसी कबीर की छांव,
अनुरागी कबीर व बाबा फरीद कहाँ पाओगे।
बुतों से हमदर्दी है कि वो कुछ कहते नहीं,
डूबते दिलों के बीच उम्मीद कहाँ पाओगे।
उदय वीर सिंह।
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