रविवार, 30 अक्तूबर 2022

फरीद कहाँ पाओगे....






 .......✍️

नफ़रत से  मोहब्बत कहाँ खरीद पाओगे।

सिर्फ रक़ीब ही मिलेंगे मुरीद कहाँ पाओगे

आंखों से जहालत का चश्मा जो नहीं उतरा

गरीबों के अंजुमन में गरीब कहाँ पाओगे ।

न पा सका मीरा सूर तुलसी कबीर की छांव,

अनुरागी कबीर व बाबा फरीद कहाँ पाओगे।

बुतों  से हमदर्दी  है  कि वो कुछ कहते नहीं,

डूबते  दिलों  के बीच उम्मीद कहाँ पाओगे।

उदय वीर सिंह।

कोई टिप्पणी नहीं: