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माह-ए-शहादत (पौष )
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(20 दिसंबर 1705 से 27 दिसंबर 1705)
साहिबे कमाल दशम पातशाह गुरु गोबिन्द सिंह जी महाराज के चार साहिबजादे बाबा अजित सिंह जी उम्र 18 वर्ष ,बाबा जुझार सिंह जी उम्र 14 वर्ष (चमकौर के युद्ध में ) बाबा जोरावर सिंह जी उम्र 9 वर्ष बाबा फतेह सिंह जी उम्र 6 वर्ष सरहिंद में ,जालिम सल्तनत द्वारा जिंदा दीवार में चुनवा दिए गए ,एक मात्र गुरु पुत्री बीबी शरण कौर जी (उम्र 15 वर्ष ) शहीद साहिबजादों व गुरूसिक्खों के अंतिम संस्कार करते समय शहीद हुईं । माता गुजर कौर जी ने अपने मासूम पोतों (साहिबजादा जोरावर सिंह जी ,फतेह सिंह जी ) के दीवार में चुने जाने के बाद अपने प्राण त्याग दिए। और हजारों गुरु- सिक्खों को कौम, देश ,संस्कृति व मूल्यों की रक्षा में शहादत प्राप्त हुई इनके अप्रतिम अकल्पनीय अविस्वसनिय शौर्य, अमर वलिदान ने सनातनी दीपशिखा को सदा के लिए बुझने से बचा लिया। हमे गर्व है हम उनके वारिस हैं।
लासानी अमर वलिदानियों कोअश्रुपूरित विनम्र श्रद्धांजलि व कोटि कोटि प्रणाम।
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दुनियां बदलने वाले देखे हैं हालात
कैसे कैसे।
पूछा जालिमों ने फरिश्तों से सवालात
कैसे कैसे।
सच और इंसाफ के रहबरी की
बात थी,
उठाये हैं अपने बज़्म में मामलात
कैसे कैसे।
इंसानियत जुल्म जालिमों के हाथ
मर रही थी,
वहशियों के कारनामे कागजात
कैसे कैसे।
गुरु,गुरुवाणी गुरूसिक्खी कि
दुनियां लासानी
जमाने को ये दिए हैं हीरे हयात
कैसे कैसे।
उदय वीर सिंह।
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