रविवार, 22 जनवरी 2023

सालार बनता गया...








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साज़िशों की आग,आदमी लाचार बनता गया।

जब ना रही दीवार झोंका रफ़्तार बनता गया।

ख़ामोश लबों की मजलिस का हस्र हुआ वीर,

तालिबों अदीबों का,गूंगा सालार बनता गया।

दाग़दारों ने मनाया जश्न जबआईना तोड़ा गया,

राग - दरबारी मिलते गए  दरबार बनता गया।

चली जहालत की आंधियां, टूटने लगे उसूल,

जब मूल्य बिकने लगे घर,बाजार बनता गया।

टूटी हमदर्दी की हर कड़ी दर्द की सर्दियां आईं

मसर्रत आयी फासला रिश्तेदार बनता गया।

उदय वीर सिंह।

21।1।23

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