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हम ख़ुशहाल हुए जी, दूसरों को दर्द देकर।
सोए खूब दूसरों को जागने का फर्ज़ देकर।
विपदा में अवसर तलाशा मोटी कमाई का,
मालामाल हुए मोटे व्याज का कर्ज़ देकर।
खून-पसीने का मोल अदा किया इस तरह,
हमने वापस किया जी लाइलाज़ मर्ज़ देकर।
फिज़ाओं का बे-सरहद होना बे-अदब माना,
नंगा किया शज़र को हमने पत्ते ज़र्द देकर।
उदय वीर सिंह।
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