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कोई दक्ष, बाम किसी का दाहिना है।
पांव की रफ़्तगी मंजिल को नापना है
यह बात अलग है हम पढ़ नहीं पाए,
हर तख़लीक़ का अपना मायिना है।
रखना मजबूरी नहीं एक जरूरत है,
हर एक शख़्श का अपना आयिना है।
पत्थर को कभी फूल नहीं कहा शीशा
यह जानकर भी कि उसको टूटना है।
उदय वीर सिंह।
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