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इंसानियत से इतनी परेशानी क्यों है।
कांटों की चारो तरफ बागवानी क्यों है।
जुल्म तो आख़िर जुल्म ही ठहरा जी,
सितमगरों पर इतनी मेहरबानी क्यों है।
अमन की किताबों का हवाला देकर,
अमन से ही इतनी बेईमानी क्यों है।
जो आपको अच्छा नहीं दूसरों को कैसे,
प्रीत की दरिया इतना कम पानी क्यों है।
अंगारों को फूल कहने का शौक देखा,
मसर्रती जमीं पे दर्द की कहानी क्यों है।
उदय वीर सिंह।
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