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चलो हम इश्तिहारों से मिलते हैं।
खूबसूरत रंगो बहारों से मिलते हैं।
ठहरा खाली पेट कोई बात नहीं,
भरे हुए कागज़ी नारों से मिलते हैं।
ये जमीन तो कदमों के नीचे है जी,
चलो सूरज चांद तारों से मिलते हैं।
आमो-खास के हैं ये दयार खुले हुए,
चलो ऊंची दीवारों से मिलते हैं।
अमन तो आग से है कोई बचा नहीं,
चलो हारे हुए किरदारों से मिलते हैं।
मिठास पकवानों के ख़्वाब में रह गई,
हैं खाली हाथ त्योहारों से मिलते है
उदय वीर सिंह।
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