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जमाने लगे सच का सत्कार करने में।
पल न लगा झूठ का व्यापार करने में।जलता रहा दौर साजिशो फ़रेबी आग,
लश्कर लगे रहे सच को लाचार करने में।
झूठ की परत अनवरत मोटी होती गयी,
झूठ लगा रहा सच को तार तार करने में।
झूठ की सोहबत शौक, शान बनने लगी,
मौत नसीब हुई सच को स्वीकार करने में।
ये सच है कि सच कोई फूलों की सेज नहीं
बहुत मुश्किल है सच पे एतबार करने में।
उदय वीर सिंह।
10।3।23
3 टिप्पणियां:
बहुत सुंदर
बहुत ही
मुश्किल है
सच पे
एतबार करने में
काफी से अधिक
श्रम जाया होता है
सादर
बहुत ही मुश्किल है
सच पे एतबार करने में
सादर
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