रविवार, 12 मार्च 2023

हर आंख सवाली नहीं होती...


 






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माना कि यहां सवाल बहुत  हैं जी,

मगर हर आँख  सवाली नहीं होती।

माना कि बहुत कमीं है मसर्रत की,

मगर  हर  झोली  खाली नहीं होती।

माना  बाजार नफ़ा- नुकसान का है, 

मगर हर सौदों  में दलाली नहीं होती।

हसरतों को जमीन मिले सब चाहते हैं,

होली तो किसी की दिवाली नहीं होती।

तन का लाल खून बहता जिस नस से

वह गोरी  किसी की काली नहीं होती।

उदय वीर सिंह।

1 टिप्पणी:

Sudha Devrani ने कहा…

माना कि बहुत कमीं है मसर्रत की,

मगर हर झोली खाली नहीं होती।
वाह!!!
बहुत सटीक ..लाजवाब।