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माना कि यहां सवाल बहुत हैं जी,
मगर हर आँख सवाली नहीं होती।
माना कि बहुत कमीं है मसर्रत की,
मगर हर झोली खाली नहीं होती।
माना बाजार नफ़ा- नुकसान का है,
मगर हर सौदों में दलाली नहीं होती।
हसरतों को जमीन मिले सब चाहते हैं,
होली तो किसी की दिवाली नहीं होती।
तन का लाल खून बहता जिस नस से
वह गोरी किसी की काली नहीं होती।
उदय वीर सिंह।
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