गुरुवार, 30 मार्च 2023

निकाले बैठे हैं...







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स्वागत की बेला में हम,

         तलवार निकाले बैठे  हैं।

नाव भंवर की ओर चली

            पतवार संभाले बैठे हैं।

पूछ रहे हैं पीर कहां है,

               घायल मानस संकुल से

अपना घर अपनी बातें, 

                अखबार निकाले बैठे हैं।

नफरत की बाजारों में

                 प्यार डरा सहमा - सहमा

दिल के आंगन में ऊंची

                    दीवार  निकाले  बैठे है।

तज अतीत अपना पीछे

                पर  अतीत  को  खोज  रहे,

अपने सिर की खबर नहीं

                  पर की दस्तार उछाले बैठे हैं।

उदय वीर सिंह।

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