.
..........✍️
कल तक एक पेड़ था आज बबूल हो गया।
कलतक अनुकूल थाआज प्रतिकूल हो गया।
मौसम अजीबोगरीब है या हमारी अक्लियत,
कल तक जो कांटा था आज फूल हो गया।
ये दीवारें हैं इनपर घर बने अपने हिसाब से
कभी दीनी कभी सियासती मकबूल हो गया।
जितना चुकाया अबूझ बढ़ता ही गया कर्ज
सरल भाषा में समझा गया व्याज मूल हो गया।
उदय वीर सिंह।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें