शनिवार, 22 अप्रैल 2023

जिंदगी तमाशाई न थी.✍️


 



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कितनी सगी थी अपनी थी पराई न थी।

संवेदनशील थी जिंदगी तमाशाई न थी।

पड़ोसी चूल्हा जला कि नहीं ,जांच लेती,

जमीन पर थी आकाश की ऊंचाई न थी। 

साग तेरा, मक्के की रोटी मेरी बांट लेते,

दाल-रोटी  तो थी बज्र सी महंगाई न थी।

माफ कर, माफ़ी  मांग  लेते खताओं  की,

रिश्तों में दर्द था  रकीबपन रूखाई न थी।

हंस कर भूल  जाते कहे का मलाल न था

वीर मोहब्बत से बढ़ कर  कोई दवाई न थी।

उदय वीर सिंह।

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