शनिवार, 27 मई 2023

कहना चाहते हैं ..


 





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अपनी वेदना संवेदना को कहना चाहते हैं।

वो  कौन  हैं लोग जो हमें रोकना चाहते हैं।

भाषा मेरी है शब्द भी मेरे हैं मुझे कहने दो,

क्यों मेरी जुबां अपने शब्द थोपना चाहते हैं।

रोटियों  के  लिए  खाद्यान्न फसलें  जरुरी हैं

क्यों खेतों में नागफनी बबूल बोना चाहते हैं।

हमें  जिसकी  जरूरत है वही चाहते हैं वीर

जो पसंद नहीं वह क्यों हमें देना  चाहते हैं।

उदय वीर सिंह।

बुधवार, 24 मई 2023

सरदार करतार सिंह सराभा

 🌹अमर सपूत सरदार करतार सिंह सराभा जी🌷

उनकी जयंती पर कोटिशः प्रणाम🙏

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" यहीं पाओगे महशर में जबां मेरी बयाँ मेरा,

मैं बन्दा हिन्द वालों का हूँ है हिन्दोस्तां मेरा।"

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फांसी ही तो चढ़ा देंगें ! इससे ज्यादा और क्या ?" हम नहीं डरते।

-करतार सिंह सराभा।

   19 वर्षीय सरदार करतारसिंह सराभा  जी को  16 नवम्बर 1915 के दिन ब्रिटिश हुकूमत ने फांसी पर चढ़ा ,दिया था। 

    अदालत में जब जज ने करतारसिंह को आगाह किया कि वह सेाच समझकर बयान दें वरना परिणाम बहुत भयावह हो सकता है, तब इस दिलेर नौजवान ने अटल निर्भय आत्मविस्वास भरे लहजे में माननीय जज को अदालत में उपरोक्त जवाब दिया था।

    आखिरी समय में जेल में मुलाकात के लिए आए दादा ने जब उससे कुछ सवाल किये तो उसने लंबी उम्र पाकर मरने वाले अपने कई परिचितों का हवाला देते हुए यह प्रतिप्रश्न किया था कि लम्बी उम्र हासिल करके उन्होंने कौन सी उपलब्धि हासिल कर ली? मात्र साढे़ अठारह वर्ष का यह युवक उस समय वास्तव में अपनी कुर्बानी से राष्ट्रनायक बन गया था। 

   8 वर्षीय बालक भगतसिंह पर इस घटना का बहुत गहरा प्रभाव पड़ा था ।इसे उन्होंने बाद मेँ अपनी प्रौढ़ इंक्लावी यात्रा में हिंदी की एक पत्रिका ‘चांद ‘ के  फांसी अंक में करतारसिंह सराभा पर अपने बगावती उद्दगार बड़ी तफ़सील से व्यक्त किये थे।

भगतसिंह सरदार करतार सिंह सराभा की तस्वीर अपने सीने से लगाये रहते थे। भगत सिंह कहा करते थे कि सराभा जी मेरे गुरू,भाई  व सखा सभी हैं।

"यहीं पाओगे महशर में जबां मेरी बयाँ मेरा,

मैं बन्दा हिन्द वालों का हूँ है हिन्दोस्तां मेरा।

मैं हिन्दी ठेठ हिन्दी जात हिन्दी नाम हिन्दी है,

यही मजहब यही फिरका यही है खानदां मेरा।

मैं इस उजड़े हुए भारत का यक मामूली जर्रा हूँ,

यही बस इक पता मेरा यही नामोनिशाँ मेरा।

मैं उठते-बैठते तेरे कदम लूँ चूम ऐ भारत ,

कहाँ किस्मत मेरी ऐसी नसीबा ये कहाँ मेरा।

तेरी खिदमत में ऐ भारत ! ये सर जाये ये जाँ जाये,

तो समझूँगा कि मरना है हयाते-जादवां मेरा।

   करतार सिंह सराभा  की लिखी उक्त गज़ल को भगत सिंह अपने पास रखते थे और अकेले में गुन गुनाया करते थे।

उदय वीर सिंह।


सोमवार, 22 मई 2023

ये रायशुमारी कैसी है


 





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घर के  चोरी सामान  हुए  पहरेदारी कैसी है।

सब जर जेवर नीलाम हुए जिम्मेदारी कैसी है।

दुखियारों से पूछ रहे अपने  दुख संताप कहो

दुख के नाम निशान नहीं रायशुमारी कैसी है।आंसू ,याचन आंखों में पीड़ा हृदय समंदर सी,

सच कहना अपराध हुआ ये पैरोकारी कैसी है।

मंचो  पर काव्य मंजरी रस अलंकार के निर्झर

चौक चौबारे पगडण्डी निर्बल को गारी कैसी है।

उदय वीर सिंह।

रविवार, 14 मई 2023

रास्ते चौड़े हुए...







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राजपथ चौड़े हुए  रफ्तार  दे गए।

टूटे आशियाने  दर्द बेशुमार दे गए।

दरारें दिलों की कम नहीं चौड़ी हुईं

होगा और इज़ाफा इश्तिहार दे गए।

उजारे  वहां आये जहां रौशनी रही,

अंधेरों में बस्तियां अंधियार दे गए।

रंगमहलों  की  खुशियां मान हो गईं

गरीब झोपड़ को लानतें हजार दे गए

चैनो खुशी अमन ले गए ग़ुरबत देकर,

लौटाने का वादा था इंतजार दे गए।

बंद हुए शिक्षालय मदिरालय आबाद

औजारों की जरूरत हथियार दे गए।

उदय वीर सिंह।

रविवार, 7 मई 2023

शुचिता ही निर्धन हो जाये...








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फेंक  निकालकर  दूर उसे 

      जब रहबर रहजन हो जाए।

क्यों जाना उस महफ़िल में

           जब पीड़ा  प्रहसन हो जाये।

भीड़ बढ़ी मदिरालय में

           मानों  विध्वंश  की  भोर  हुई,

अवश्यम्भावी है विनाश

                 जब ग्रंथालय निर्जन हो जाये।

मद पाप भरे कंचन घट में

                      पद  पूजन का आमंत्रण  हो,

यह सर्वनाश का लक्षण है

                   जब शुचिता ही निर्धन हो जाये।


उदय वीर सिंह।

शनिवार, 6 मई 2023

प्रहसन हो जाती है

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सुखासीन की मदिरा,नीर आचमन हो जाती है।

एक गरीब बेबस की पीड़ा प्रहसन हो जाती है।

षडयंत्र  के  कंचनी मदमस्त वहशी  दरबारों में 

मजलूम की  लाज निर्मम निर्वसन हो जाती है।

दासत्व पाकर  भी  गरीब दया  का याचक रहा,

स्वामी-समर्थ की गालीआशीर्वचन हो जाती है।

हयाती रंगमहल भव्य राजपथ विबाईयों पर मौन

निर्बल की काया दुखों का परिवहन हो जाती है।

उदय वीर सिंह

शुक्रवार, 5 मई 2023

सरदार रखते हैं...


 





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संत व सिपाही की फितरत सरदार रखते हैं।

सत्ता  नहीं  शासन  नहीं  सरोकार  रखते हैं।

किसी ने रचे खांचे,तहखाने दौलत के वास्ते,

पीरोंने आशियाने बनाये उसमें प्यार रखते हैं।

एक इंसान को जरूरत नूरी इंसानियत की है,

समतल धरातल की उम्मीद आधार रखते हैं।

हम आदमी हैं ये तार्रुफ़ क्या काफी नहीं वीर

क्यों झूठी शान में ऊंची-नीची दीवार रखते हैं।

उदय वीर सिंह।

बुधवार, 3 मई 2023

घर-बार मांगने गए






 🙏नमस्कार सुधि मित्रों !

पत्थरों से गुलो-गुलशन  प्यार  मांगने गए।

मुसाफ़िर रहजनों से अधिकार मांगने गए।

अभी यकीन था अपनी पाक बेगुनाही पर

शहर तूफ़ानों सेअपना घर-बार मांगने गए।

पढ़कर अखबार की सुर्खियों में छपा बयान

बागबां बेरहम पतझडों से बहार मांगने गए।

सरगोशियां थीं सच को सच ही कहा जायेगा

झूठ की मंडियां सदका सदाचार मांगने गए।

नदी  जानती है गुमनाम हो जाएगी सागर में

डूबते  मुसाफ़िर भंवर से पतवार मांगने गए।

उदय वीर सिंह।

सोमवार, 1 मई 2023

मजदूर दिवस की बधाई






 🙏विश्व श्रमिक दिवस की बधाई मित्रों 🌹

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हर हाथ को औजार मिले काम मिले।

श्रमिक  को  श्रम  का पूरा दाम मिले।

जहां से द्वार प्रगति के बनते खुलते हैं

उन्हें न्याय सहकार मिले सम्मान मिले।

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श्रम-विंदु का मोल उच्चप्रतिमान मिले।

त्याग तपस्या अर्पण का प्रतिदान मिले।

अधरों  पर  मुस्कान  भरोषा  दिल में हो,

स्वास्थ्य सुरक्षा रोटी कपड़ा मकान मिले।

उदय वीर सिंह।