राजपथ चौड़े हुए रफ्तार दे गए।
टूटे आशियाने दर्द बेशुमार दे गए।
दरारें दिलों की कम नहीं चौड़ी हुईं
होगा और इज़ाफा इश्तिहार दे गए।
उजारे वहां आये जहां रौशनी रही,
अंधेरों में बस्तियां अंधियार दे गए।
रंगमहलों की खुशियां मान हो गईं
गरीब झोपड़ को लानतें हजार दे गए
चैनो खुशी अमन ले गए ग़ुरबत देकर,
लौटाने का वादा था इंतजार दे गए।
बंद हुए शिक्षालय मदिरालय आबाद
औजारों की जरूरत हथियार दे गए।
उदय वीर सिंह।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें