बुधवार, 3 मई 2023

घर-बार मांगने गए






 🙏नमस्कार सुधि मित्रों !

पत्थरों से गुलो-गुलशन  प्यार  मांगने गए।

मुसाफ़िर रहजनों से अधिकार मांगने गए।

अभी यकीन था अपनी पाक बेगुनाही पर

शहर तूफ़ानों सेअपना घर-बार मांगने गए।

पढ़कर अखबार की सुर्खियों में छपा बयान

बागबां बेरहम पतझडों से बहार मांगने गए।

सरगोशियां थीं सच को सच ही कहा जायेगा

झूठ की मंडियां सदका सदाचार मांगने गए।

नदी  जानती है गुमनाम हो जाएगी सागर में

डूबते  मुसाफ़िर भंवर से पतवार मांगने गए।

उदय वीर सिंह।

3 टिप्‍पणियां:

Ravindra Singh Yadav ने कहा…

आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर गुरुवार 04 मई 2023 को लिंक की जाएगी ....

http://halchalwith5links.blogspot.in
पर आप सादर आमंत्रित हैं, ज़रूर आइएगा... धन्यवाद!

!

विभा रानी श्रीवास्तव ने कहा…

बढ़िया रचना

सुशील कुमार जोशी ने कहा…

वाह