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सुखासीन की मदिरा,नीर आचमन हो जाती है।
एक गरीब बेबस की पीड़ा प्रहसन हो जाती है।
षडयंत्र के कंचनी मदमस्त वहशी दरबारों में
मजलूम की लाज निर्मम निर्वसन हो जाती है।
दासत्व पाकर भी गरीब दया का याचक रहा,
स्वामी-समर्थ की गालीआशीर्वचन हो जाती है।
हयाती रंगमहल भव्य राजपथ विबाईयों पर मौन
निर्बल की काया दुखों का परिवहन हो जाती है।
उदय वीर सिंह
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