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फेंक निकालकर दूर उसे
जब रहबर रहजन हो जाए।
क्यों जाना उस महफ़िल में
जब पीड़ा प्रहसन हो जाये।
भीड़ बढ़ी मदिरालय में
मानों विध्वंश की भोर हुई,
अवश्यम्भावी है विनाश
जब ग्रंथालय निर्जन हो जाये।
मद पाप भरे कंचन घट में
पद पूजन का आमंत्रण हो,
यह सर्वनाश का लक्षण है
जब शुचिता ही निर्धन हो जाये।
उदय वीर सिंह।
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