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पाखंडों का दीप्त सूर्यओझलअस्त होजाता है।
पाकर ताप लाख हम्र्य पलमें ध्वस्त होजाता है।अन्यायअसत्यकी भीतोंपर क्षार लिपटने लगता
सागर की निर्ममता जातक अगत्स्य होजाता है।
पीड़ा भी धैर्य खो देती है,अंतहीन आघातों पर,
स्वरूप धार का धर लेती पर्वत पस्त होजाता है
मस्त हुआ जाएअवसादी स्नेही त्रस्त होजाता है
उदय वीर सिंह।