अभिव्यक्ति का एक कामिल युग..✍️
महज कुछ साल लगते हैं अक्लमंद होने में।
कई सदियां लगती हैं मुंशी प्रेम चंद होने में।
आंसू क्रंदन वेदना भेद षडयंत्रों की मेखला,
कमर टूट जाती है समाज का फरजंद होने में।
उदय वीर सिंह।
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