रविवार, 27 अगस्त 2023

विज्ञान को दूर रखो पाखंड से....✍️


 






विज्ञान को दूर रखो पाखंड से!...✍️

सुना  है चाँद पर  मज़हब इंतजार में है।

ज्ञान हासिये पर हुआ सौदाई प्रचार में है।

सुना  है  रोवर से पहले पहुंच गया फरेब,

एलियन, भगवानों  की चर्चा बाजार में है।

शरगोशियाँ  हैं अब अपनी मुट्ठी में है चाँद,

चाँद कहकशाँ में नहीं अपने अखबार में है।

हम  कहाँ  निकले जहालत के हिजाब से,

चंद्रयान की सफलता पाखंड के दरबार में है।

हम यूं ही नहीं हुए बेगाने अपनी जमीन पर

साडी हिलती हुई छत झूठ की दीवार पर है।

उदय वीर सिंह।

सोमवार, 21 अगस्त 2023

संभाल के बोलिये






 

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बोलिए जनाब हिसाब से  बोलिये।

तथ्यों  से और किताब  से बोलिये।

न जा पाएंगे कुछ भी बोल कर वीर

अपनी जबान  संभाल कर बोलिये।

जमाना सुनता हैऔर सोचता भी है,

मंच से बोलिये या ख़्वाब से बोलिये।

जानने लगे लोग सच-झूठ का फर्क

नेक रहमदिल  हो  वहाब से बोलिये।

गूंगा भी समझता है प्यार  की भाषा

बेनकाब बोलिये या नकाब से बोलिये।

उदय वीर सिंह।

गुरुवार, 17 अगस्त 2023

कौन देखता है।


 





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रूप  देखता  है  हिजाब कौन  देखता है।

ख़्वाब सामने होतो ख़्वाब कौन देखता है।

जब उम्र  निकल गयी ब्याज भरते - भरते

कर्ज़ माफ़ हो जाए हिसाब कौन देखता है।

सरगोशियां हैं  कैद  हो गयी खिजाओं को,

मौसम  गुलाबी  हो गुलाब  कौन देखता है।

मंजूर हो जाएं तन पर लगे सारे काले दाग

कागज कोरा ही सही जवाब कौन देखता है।

उदय वीर सिंह।

रविवार, 13 अगस्त 2023

मुकाम आ गया है...








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रहजनों की बस्तियां तूफ़ान आ  गया है।

लुटेरों के आगेअब हिंदुस्तान आ गया है।

आग की जद में कभी समंदर नहीं आता

दहशत  है  बज्मे-दर्द  इंसान आ गया है।

सिंहासन के नीचे आखिर जमीन रहती है,

उसे खाली  कराने मालिकान आगया है।

कभी समय ठहरा नहीं न ही ठहरेगा कहीं

उतरना होगा मुसाफिर मुकाम आ गया है।

उदय वीर सिंह।

शनिवार, 12 अगस्त 2023

आंसू मौत दहशत...








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 आंसू मौत दहशत मद पहचान हो गयी है।

देख राजा की रियासत बदनाम हो गयी है।
नीलाम  आबरु  है अपनी ही सरजमीं पर,
सुंदर शहर  की धरती शमशान हो गयी है।
घावों को रोज सीते,नित रोज नए मिलते हैं,
कंदुक  सी खेलों में अब आवाम हो गयी है।
सत्य  तडफता  होठों  पर बंदूकों का पहरा,
संवेदन प्रीत समीर कहीं गुमनाम हो गयी है।
उदय वीर सिंह।

मंगलवार, 8 अगस्त 2023

बुझे हुए चिरागों..








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बुझे हुए चिरागों से उजालों की उम्मीद कैसी।

बिकी हुई जुबान से सवालों की उम्मीद कैसी।

मर-मर कर रोज जीने का जिन्हें सलीका आया,

उनसे सरफरोशी के खयालों की उम्मीद कैसी।

हौसलों  की छत सिर उपर न रख पाए अपने

बुझे  हुए चूल्हों  से , निवालों  की उम्मीद कैसी।

एक हवा का हल्का झोंका क्या आया गिर पड़े,

भुरभुरी रेत की अबल दीवालों से उम्मीद कैसी।

उदय वीर सिंह।

शनिवार, 5 अगस्त 2023

सच कह गया होता..


 






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जो सच था वो सच कह गया होता ।

आदमी सिर्फ आदमी रह गया होता।
टूटने  का  डर न होता शीशों  को वीर,
पत्थरों  में  थोड़ा दर्द  रह  गया होता।
लौटना होता  है परवाज़ से परिंदों को
आसमान ऊंचाई देता है घर नहीं देता।
मुल्तवी होतीं अदालतें,मंसूख तारीखें,
इंसाफ नहीं मिलता जो डर गया होता।
उदय वीर सिंह।