शनिवार, 5 अगस्त 2023

सच कह गया होता..


 






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जो सच था वो सच कह गया होता ।

आदमी सिर्फ आदमी रह गया होता।
टूटने  का  डर न होता शीशों  को वीर,
पत्थरों  में  थोड़ा दर्द  रह  गया होता।
लौटना होता  है परवाज़ से परिंदों को
आसमान ऊंचाई देता है घर नहीं देता।
मुल्तवी होतीं अदालतें,मंसूख तारीखें,
इंसाफ नहीं मिलता जो डर गया होता।
उदय वीर सिंह।