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जो सच था वो सच कह गया होता ।
आदमी सिर्फ आदमी रह गया होता।टूटने का डर न होता शीशों को वीर,
पत्थरों में थोड़ा दर्द रह गया होता।
लौटना होता है परवाज़ से परिंदों को
आसमान ऊंचाई देता है घर नहीं देता।
मुल्तवी होतीं अदालतें,मंसूख तारीखें,
इंसाफ नहीं मिलता जो डर गया होता।
उदय वीर सिंह।
1 टिप्पणी:
वाह.गज़ब.
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