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रहजनों की बस्तियां तूफ़ान आ गया है।
लुटेरों के आगेअब हिंदुस्तान आ गया है।
आग की जद में कभी समंदर नहीं आता
दहशत है बज्मे-दर्द इंसान आ गया है।
सिंहासन के नीचे आखिर जमीन रहती है,
उसे खाली कराने मालिकान आगया है।
कभी समय ठहरा नहीं न ही ठहरेगा कहीं
उतरना होगा मुसाफिर मुकाम आ गया है।
उदय वीर सिंह।
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