मंगलवार, 8 अगस्त 2023

बुझे हुए चिरागों..








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बुझे हुए चिरागों से उजालों की उम्मीद कैसी।

बिकी हुई जुबान से सवालों की उम्मीद कैसी।

मर-मर कर रोज जीने का जिन्हें सलीका आया,

उनसे सरफरोशी के खयालों की उम्मीद कैसी।

हौसलों  की छत सिर उपर न रख पाए अपने

बुझे  हुए चूल्हों  से , निवालों  की उम्मीद कैसी।

एक हवा का हल्का झोंका क्या आया गिर पड़े,

भुरभुरी रेत की अबल दीवालों से उम्मीद कैसी।

उदय वीर सिंह।

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