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बुझे हुए चिरागों से उजालों की उम्मीद कैसी।
बिकी हुई जुबान से सवालों की उम्मीद कैसी।
मर-मर कर रोज जीने का जिन्हें सलीका आया,
उनसे सरफरोशी के खयालों की उम्मीद कैसी।
हौसलों की छत सिर उपर न रख पाए अपने
बुझे हुए चूल्हों से , निवालों की उम्मीद कैसी।
एक हवा का हल्का झोंका क्या आया गिर पड़े,
भुरभुरी रेत की अबल दीवालों से उम्मीद कैसी।
उदय वीर सिंह।
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