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आदमी ही आदमी को मिटाना चाहताहै।
बेपनाह मोहब्बत हो गयी नफरत से उसे
हर गांव ,हर शहर इसे लगाना चाहता है।
इल्म से गूंगा शराफत से बहरा हुआ
दर दीये रोशनी के बुझाना चाहता है।
मशरूफ़ मंदिर मस्जिद की तामीर में,
इंसानियत की कायनात गिराना चाहता है।
कहीं मुठ्ठी भरअनाज को मोहताजआदमी
कोई दुनियां की दौलत खजाना चाहता है।
उदय वीर सिंह।
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