शनिवार, 7 मार्च 2020

जीना सीखिए ....


पड़ोसी की भी खुशहाली देखना सीखिए,
घी नहीं आग पर पानी फेकना सीखिए -
जब से ईमान बेचे-ख़रीदे जाने लगे हैं वीर
पत्थरों की बरसात में दिल सहेजना सीखिए -
तूफ़ान दरिया ही नहीं साहिल को भी छूता है,
पहले भंवर से किश्ती को खींचना सीखिए-
फल नहीं तो छाँव ,मयस्सर होगी जरुर,
बनकर हमदर्द बिरवों को सींचना सीखिए-
मुतमईन होईये मिल्खा बोल्ट से बेशक
आपके तो पाँव हैं,बे-पांवों से चलना सीखिए-
आप तो भरे पूरे परिवार के चश्मों चिराग हैं
जिनका कोई नहीं उनसे भी जीना सीखिए -
उदय वीर सिंह



4 टिप्‍पणियां:


  1. जय मां हाटेशवरी.......

    आप को बताते हुए हर्ष हो रहा है......
    आप की इस रचना का लिंक भी......
    08/03/2020 रविवार को......
    पांच लिंकों का आनंद ब्लौग पर.....
    शामिल किया गया है.....
    आप भी इस हलचल में. .....
    सादर आमंत्रित है......

    अधिक जानकारी के लिये ब्लौग का लिंक:
    https://www.halchalwith5links.blogspot.com
    धन्यवाद

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  2. जी नमस्ते,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा शुक्रवार (13-03-2020) को भाईचारा (चर्चा अंक - 3639) पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    *****
    आँचल पाण्डेय

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  3. वाह
    बेहतरीन सीख देती रचना।
    मिल्खा भी बनिये लेकिन बे पांव होकर भी जीना सीखे।
    मददगार बनाना सीखें।
    लाजवाब।
    मेरी नई पोस्ट - कविता २

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