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शज़र है कि सारा शहर चाहता है।
परिन्दा एक सारा शज़र चाहता है।
साथ हैं जश्न है ,फ़ासले अलविदा,
सफ़र एक सदा हमसफ़र चाहता है।
आईने की हिफाज़त जरूरी समझ,
संगभी अपने भीतर ज़िगर चाहता है।
बरसा बादल बहा नीर सागर चला,
बुलबुला भी एक लंबी उमर चाहता है।
रास्ते हैं, बहुत से मुसाफ़िर भी हैं,
एक बे-नैन वाला नज़र चाहता है।
उदय वीर सिंह।
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