मंगलवार, 9 नवंबर 2021

दहशत भरी ख़ामोशी


 








दहशतभरी ख़ामोशी समाधान नहीं होती।

काया से लिपटी लंगोटी परिधान नहीं होती।

मुसाफ़िर हैं हम ठहर जाते हैं नमी पाकर,

किसी दरख़्त की छाया, मकान नहीं होती।

पैगाम देते हैं टूटे कांच व पत्थरों से भरे कूँचे,

दीन की बे-अदबी दीन की शान नहीं होती।

अख़लाक़ है कि हम मिटते हैं इंसाफ पर,

वायदाफ़रोशों की कोई जबान नहीं होती।

हर जमीं-जर्रों में हिन्दुतान की महक है, 

ये मां है सबकी है किसीके नाम नहीं होती।

उदय वीर सिंह।

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