आदि गुरु ! गुरु नानक देव जी के पावन प्रकाशोत्सवकी
पूर्व संध्या पर समस्त मानव जाति को लख -लख
बधाईयाँ , प्यार ।
जगमग व्योम धरा का
आँचल,अँधेरा मिट जाता है
खोल कपाट तोड़ कर वन्धन
बाबा नानक आता है -
अमृत वाणी , अमृत धारा
अमृत कलश संजो करके
वसुधा भींगे प्रेम की वर्षा ,
प्रिय प्रीतम की हो करके -
ध्रुर की वाणी, कंठ पधारी ,
मरदाना रबाब बजता है -
रीठा मीठा हो जाता
चक्की भी ,आपे चलती है ,
नित लंगर चलता रहता है ,
गोदाम सलामत रहती है -
सच्चा सौदा दरवेशों संग
सौदाई कर जाता है -
किसकी रोटी, खून भरी है ,
किसकी रोटी दूध भरी -
किसका जीवन पावन है,
किसका है, विष की गठरी -
ले करके अपने हाथों में
बाबा नानक दिखलाता है-
पथ ,पाखंड , अहंकार का
तोडा अपने हाथों से,
मिथ्या,ढोंग ,भ्रम व वन्धन
बिलट गए संघातों से-
चानड़ होता मानस है जब
प्रकाश ज्ञान का पाता है -
कर्म-कांड ,जंजाल ,जनेऊ ,
उंच -नीच ,शुभ अपयश का ,
मानुष की सब जाति एक
एक मालिक सब बन्दों का -
इश्वर एक वारिश हम उसके ,
सूत्र वाक्य दे जाता है -
हिल उठती हैं सरकारें ,
निर्बल को छलने वाले ,
तौहीद की आवाज उठाई,
छंट गए बादल काले -
पीर परायी ,सुख साँझा
जन - सन्देश सुनाता है -
इश्वर एक अनेक नाम
मत बांध दिशा व कालों में
न जन्मा न मृत्यु वरन है
न रूप - रंग के थालों में -
प्यार की सरिता अमृत वाणी
जन - जन को दे जाता है -
उदय वीर सिंह