शनिवार, 18 मई 2024

फिर आएगा मधुमास


 





...फिर वही मधुमास ..✍️

गिर  जाने का  डर लेकर 

चलने  की  प्रत्याशा छोड़।

अपने  पग  का  मान रहे 

औरों  की सबआशा छोड़।

चाहे जितना बांधो अपनी

मुट्ठी  से  रेत  फिसलनी है,

दुःख  आये  या सुख बेला

नयनों  से  बूंद निकलनी है।

बैसाखी का नत अवलंबन 

जीवन  को भार बनाता है,

बीज   दफ़न   हो  मिट्टी में

फल का आधार बनाता है।

आंखों  में  सूनापन  क्यों 

हास परिहास भर जाने दो।

जीवन  के  अनुदार  तत्व 

मानस  से  मर  जाने  दो।

पतझड़ का आना पाप नहीं 

वो  आया  है  फिर जाएगा।

फिर  कुसुम  की  डार  वही

वैभव मधुमास का आएगा।

उदय वीर सिंह।

मंगलवार, 14 मई 2024

उंगलियों में....







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हमारी  उंगलियों  में तलवार देखने लगे।

नंगी  शमशीरों  में  पतवार  देखने  लगे।

दलदली जमीन  पोली  उर्वर  कही  गई,

मीठे नीर की बावली मझधार देखने लगे।

विश्वास का संकट इतना गहरा होता गया

चोर उचक्कों में अपना सरदार देखने लगे।

तिजारती  गलियां  हयात सी दिखने लगीं,

पाक आंगन  में  मेला  बाजार देखने लगे।

उदय वीर सिंह।

रविवार, 12 मई 2024

अलविदा डॉ सुरजीत पातर साहब 🙏🏼

 






अलविदा अनमोल रत्न सरदार " डॉ सुरजीत पातर " साहब 🙏🏼पंजाबियत व पंजाबी बोली के एक  देदीप्यमान नक्षत्र का यूं अस्त हो जाना ! बहुत ही दुःखद। आप प्रखर अभिव्यक्ति के बुलंद सालार रहे। आम जनमानस की आवाज के अप्रतिम साहित्य मनीषी।

🌹 विनम्र श्रद्धांजलि सर🌹

जी आप  जैसे  कम  मिलते हैं।

बाद जाने के सिर्फ गम मिलते हैं।

सालारों के तख़्त तो भर जाएंगे

मगर सालारों के नैन नम मिलते हैं।

उदय वीर सिंह।

11।5।24

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मंगलवार, 7 मई 2024

जरूरत मसले मुद्दे...✍️


 






...✍️

जरूरत, मसले ,मुद्दे गायब हैं अखबारों से।

धर्म पंथ उन्माद भेद मुफ्त मिले बाजारों से।

शिक्षा ,तर्क, ज्ञान विज्ञान हुए व्यर्थ के गीत,

रोटी कपड़ा मकान सब चीने गए दीवारों से।

शिक्षा स्वास्थ्य सुरक्षा हुए गए दिनों की बातें,

हुआ उपेक्षित जनजीवन मूलभूतअधिकारों से।

भय भूख गरीबी का चिंतन मनन विलोप कहीं,

टोपी माला रंग वसन के अलख जगे दरबारों से।

धर्म ,जाति ,कुनबों ,फिरकों की रक्षा सर्वोपरि,

नित जीवन घिरता जाताअंध पाखंड के तारों से।

उदय वीर सिंह।

शुक्रवार, 3 मई 2024

सलामत रहो...✍️


 





.....✍️

आंधियों  को इजाजत  दिए जा रहे,

चिरागों  को   कहते  सलामत  रहो।

आग  में घी की आमद बढ़ी जा रही,

कह  रहे  बस्तियों  को सलामत रहो।

दे  रहे  हो  ज़हर  जाम  दर जाम भर,

कह  रहे  जिंदगी  को  सलामत  रहो।

भर रहे  वैर  नफ़रत दिल दहलीज में,

कह  रहे  आदमी  को  सलामत  रहो

उदय वीर सिंह।