ख्वाबों को आँखों से कभी आजाद कर लो
उजड़ा हुआ चमन है फिर आबाद कर लो -
दौर लौटा न कभी , बन के माजी जो गया
क्या मुनासिब है ,अंधों से हिजाब कर लो-
ये तो मालूम है उदय के चाँद तेरा ही नहीं
ये अच्छा नहीं की रातें तुम खराब कर लो -
टूट जाता है दिल ओ आईना एक दिन
ये मुनासिब नहीं की खुद को नाराज कर लो
उदय वीर सिंह