...फिर वही मधुमास ..✍️
गिर जाने का डर लेकर
चलने की प्रत्याशा छोड़।
अपने पग का मान रहे
औरों की सबआशा छोड़।
चाहे जितना बांधो अपनी
मुट्ठी से रेत फिसलनी है,
दुःख आये या सुख बेला
नयनों से बूंद निकलनी है।
बैसाखी का नत अवलंबन
जीवन को भार बनाता है,
बीज दफ़न हो मिट्टी में
फल का आधार बनाता है।
आंखों में सूनापन क्यों
हास परिहास भर जाने दो।
जीवन के अनुदार तत्व
मानस से मर जाने दो।
पतझड़ का आना पाप नहीं
वो आया है फिर जाएगा।
फिर कुसुम की डार वही
वैभव मधुमास का आएगा।
उदय वीर सिंह।