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आंधियों को इजाजत दिए जा रहे,
चिरागों को कहते सलामत रहो।
आग में घी की आमद बढ़ी जा रही,
कह रहे बस्तियों को सलामत रहो।
दे रहे हो ज़हर जाम दर जाम भर,
कह रहे जिंदगी को सलामत रहो।
भर रहे वैर नफ़रत दिल दहलीज में,
कह रहे आदमी को सलामत रहो
उदय वीर सिंह।
जीवन इसी विरोधाभास का नाम है
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