खोलो होंठ , शब्द उच्चरित हों ,
अभिव्यक्तियों को स्वर मिले ,
अंतहीन न हों बेदना की करवटें ,
आये नींद इतनी,स्वप्नों को घर मिले -
स्वांसों में वेग हो फूंक सकें विगुल ,
शंखनाद की शक्तियां आकर ले ,
मिटाने को अस्तित्व विषमता का ,
परायी हो दुश्चिंता , सृजन साकार ले -
कर सकें स्पर्स ,भर अंक आराध्य का
तपस्या हो सार्थक , शु-फल मिले -
गीत में मालिन्य क्यों शुभ-माधुरी प्रसंग वर
पुरुषार्थ का निहितार्थ ,लक्ष्य तेरी अर्चना ,
का-पुरुष की पद्मिनी कब ,छल की न अप्सरा ,
कर्मवीर ही विजय वरे,उपकार की हो कामना-
आगमन तिमिर का तिरोहित हो ,
प्रभात का , निशा को वर मिले-
खंडित हों लौह बंध ,कुप्रथा कुरीत ढंग ,
त्रासदी तजे की, वैधव्य का न अर्थ हो ,
नेत्र में प्रकाश हो ,अश्कों की धार क्यों ?
विकलता विलीन हो कुशलता समर्थ हो
अन्शुमान की प्रभा लिए ,जल उठे दीप ,
तेज देदीप्यमान हो मौन भी मुखर उठे -
विभीषिका प्रमाद की ,सर्जना प्रलम्भ की ,
है भारती की कोख में वेदनाअसीम क्यों ?
हो व्याधिमुक्त भारती हर अंग शक्तिमान हो ,
आहुति के हाथ में याचना आसीन क्यों ?
जल उठे प्रचंड अग्नि,भाष्मित हो होलिका ,
देवों के देश को निष्ठा प्रखर मिले -
उदय वीर सिंह
१९/११/२०११
अभिव्यक्तियों को स्वर मिले ,
अंतहीन न हों बेदना की करवटें ,
आये नींद इतनी,स्वप्नों को घर मिले -
स्वांसों में वेग हो फूंक सकें विगुल ,
शंखनाद की शक्तियां आकर ले ,
मिटाने को अस्तित्व विषमता का ,
परायी हो दुश्चिंता , सृजन साकार ले -
कर सकें स्पर्स ,भर अंक आराध्य का
तपस्या हो सार्थक , शु-फल मिले -
गीत में मालिन्य क्यों शुभ-माधुरी प्रसंग वर
पुरुषार्थ का निहितार्थ ,लक्ष्य तेरी अर्चना ,
का-पुरुष की पद्मिनी कब ,छल की न अप्सरा ,
कर्मवीर ही विजय वरे,उपकार की हो कामना-
आगमन तिमिर का तिरोहित हो ,
प्रभात का , निशा को वर मिले-
खंडित हों लौह बंध ,कुप्रथा कुरीत ढंग ,
त्रासदी तजे की, वैधव्य का न अर्थ हो ,
नेत्र में प्रकाश हो ,अश्कों की धार क्यों ?
विकलता विलीन हो कुशलता समर्थ हो
अन्शुमान की प्रभा लिए ,जल उठे दीप ,
तेज देदीप्यमान हो मौन भी मुखर उठे -
विभीषिका प्रमाद की ,सर्जना प्रलम्भ की ,
है भारती की कोख में वेदनाअसीम क्यों ?
हो व्याधिमुक्त भारती हर अंग शक्तिमान हो ,
आहुति के हाथ में याचना आसीन क्यों ?
जल उठे प्रचंड अग्नि,भाष्मित हो होलिका ,
देवों के देश को निष्ठा प्रखर मिले -
उदय वीर सिंह
१९/११/२०११
5 टिप्पणियां:
आगमन तिमिर का तिरोहित हो ,
प्रभात का , निशा को वर मिले-
बेहतरीन अभिव्यक्ति
आगमन तिमिर का तिरोहित हो ,
प्रभात का , निशा को वर मिले...
बहुत खूब उदय जी ... भोर तो प्रभू का वरदान है निशा के लिए ... सुन्दर पंक्तियाँ ....
सुन्दर और सार्थक प्रस्तुति.
.
आये नींद इतनी,स्वप्नों को घर मिले -
वाह!
सुंदर रचना!
विभीषिका प्रमाद की ,सर्जना प्रलम्भ की ,
है भारती की कोख में वेदनाअसीम क्यों ?
हो व्याधिमुक्त भारती हर अंग शक्तिमान हो ,
आहुति के हाथ में याचना आसीन क्यों ?
....बहुत सुंदर और सार्थक प्रस्तुति...
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