हम रहे इन्सान कितना,
कह नहीं सकते-
गिर सकता है इन्सान कितना,
कह नहीं सकते-
मिट गयी है लक्षमण रेखा
कायम कबूल थी
बिक सकता है ईमान कितना,
कह नहीं सकते -
एक नारी ने माँगा समाज से
प्यार की दौलत
मिला है उसको मान कितना
कह नहीं सकते-
खो गयी जमीं जिसे वो
दहलीज कह रही थी ,
पाया है आसमान कितना,
कह नहीं सकते-
भरोषा था उदय आँखों में,
समंदर जितना ,
करता है जां निसार कितना
कह नहीं सकते -
- उदय वीर सिंह
![](http://1.bp.blogspot.com/-xKpWgjMrCBY/UN8M6RKIFfI/AAAAAAAAApI/GwvxvJWOltE/s320/398721_309560872496481_761481767_n.jpg)
गिर सकता है इन्सान कितना,
कह नहीं सकते-
मिट गयी है लक्षमण रेखा
कायम कबूल थी
बिक सकता है ईमान कितना,
कह नहीं सकते -
एक नारी ने माँगा समाज से
प्यार की दौलत
मिला है उसको मान कितना
कह नहीं सकते-
खो गयी जमीं जिसे वो
दहलीज कह रही थी ,
पाया है आसमान कितना,
कह नहीं सकते-
भरोषा था उदय आँखों में,
समंदर जितना ,
करता है जां निसार कितना
कह नहीं सकते -
- उदय वीर सिंह