हम रहे इन्सान कितना,
कह नहीं सकते-
गिर सकता है इन्सान कितना,
कह नहीं सकते-
मिट गयी है लक्षमण रेखा
कायम कबूल थी
बिक सकता है ईमान कितना,
कह नहीं सकते -
एक नारी ने माँगा समाज से
प्यार की दौलत
मिला है उसको मान कितना
कह नहीं सकते-
खो गयी जमीं जिसे वो
दहलीज कह रही थी ,
पाया है आसमान कितना,
कह नहीं सकते-
भरोषा था उदय आँखों में,
समंदर जितना ,
करता है जां निसार कितना
कह नहीं सकते -
- उदय वीर सिंह

गिर सकता है इन्सान कितना,
कह नहीं सकते-
मिट गयी है लक्षमण रेखा
कायम कबूल थी
बिक सकता है ईमान कितना,
कह नहीं सकते -
एक नारी ने माँगा समाज से
प्यार की दौलत
मिला है उसको मान कितना
कह नहीं सकते-
खो गयी जमीं जिसे वो
दहलीज कह रही थी ,
पाया है आसमान कितना,
कह नहीं सकते-
भरोषा था उदय आँखों में,
समंदर जितना ,
करता है जां निसार कितना
कह नहीं सकते -
- उदय वीर सिंह