गुरुवार, 1 जून 2023

फर्क पड़ता है





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गद्दार को गद्दार कहो  क्या फर्क पड़ता है,

गद्दार को वफादार कहो तो फर्क पड़ता है।

इश्तिहारों में जगह पा जाए झूठ लाजिमी है

संस्कारों को समाचार कहो फर्क पड़ता है।

हजारों दर्द मिले एक और मिला क्या फ़र्क, 

संवेदना को कदाचार कहो फर्क पड़ता है।

वारों  की  कमीं नहीं  वो आएंगे जाएंगे ही

मंगलवार  को  इतवार कहो फर्क पड़ता है।

महल  का  मायिना  सिर्फ  दीवार  ही  नहीं

दीवारों  को रोशनदान कहो  फर्क पड़ता है।

उदय वीर सिंह।

शनिवार, 27 मई 2023

कहना चाहते हैं ..


 





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अपनी वेदना संवेदना को कहना चाहते हैं।

वो  कौन  हैं लोग जो हमें रोकना चाहते हैं।

भाषा मेरी है शब्द भी मेरे हैं मुझे कहने दो,

क्यों मेरी जुबां अपने शब्द थोपना चाहते हैं।

रोटियों  के  लिए  खाद्यान्न फसलें  जरुरी हैं

क्यों खेतों में नागफनी बबूल बोना चाहते हैं।

हमें  जिसकी  जरूरत है वही चाहते हैं वीर

जो पसंद नहीं वह क्यों हमें देना  चाहते हैं।

उदय वीर सिंह।

बुधवार, 24 मई 2023

सरदार करतार सिंह सराभा

 🌹अमर सपूत सरदार करतार सिंह सराभा जी🌷

उनकी जयंती पर कोटिशः प्रणाम🙏

***

" यहीं पाओगे महशर में जबां मेरी बयाँ मेरा,

मैं बन्दा हिन्द वालों का हूँ है हिन्दोस्तां मेरा।"

***

फांसी ही तो चढ़ा देंगें ! इससे ज्यादा और क्या ?" हम नहीं डरते।

-करतार सिंह सराभा।

   19 वर्षीय सरदार करतारसिंह सराभा  जी को  16 नवम्बर 1915 के दिन ब्रिटिश हुकूमत ने फांसी पर चढ़ा ,दिया था। 

    अदालत में जब जज ने करतारसिंह को आगाह किया कि वह सेाच समझकर बयान दें वरना परिणाम बहुत भयावह हो सकता है, तब इस दिलेर नौजवान ने अटल निर्भय आत्मविस्वास भरे लहजे में माननीय जज को अदालत में उपरोक्त जवाब दिया था।

    आखिरी समय में जेल में मुलाकात के लिए आए दादा ने जब उससे कुछ सवाल किये तो उसने लंबी उम्र पाकर मरने वाले अपने कई परिचितों का हवाला देते हुए यह प्रतिप्रश्न किया था कि लम्बी उम्र हासिल करके उन्होंने कौन सी उपलब्धि हासिल कर ली? मात्र साढे़ अठारह वर्ष का यह युवक उस समय वास्तव में अपनी कुर्बानी से राष्ट्रनायक बन गया था। 

   8 वर्षीय बालक भगतसिंह पर इस घटना का बहुत गहरा प्रभाव पड़ा था ।इसे उन्होंने बाद मेँ अपनी प्रौढ़ इंक्लावी यात्रा में हिंदी की एक पत्रिका ‘चांद ‘ के  फांसी अंक में करतारसिंह सराभा पर अपने बगावती उद्दगार बड़ी तफ़सील से व्यक्त किये थे।

भगतसिंह सरदार करतार सिंह सराभा की तस्वीर अपने सीने से लगाये रहते थे। भगत सिंह कहा करते थे कि सराभा जी मेरे गुरू,भाई  व सखा सभी हैं।

"यहीं पाओगे महशर में जबां मेरी बयाँ मेरा,

मैं बन्दा हिन्द वालों का हूँ है हिन्दोस्तां मेरा।

मैं हिन्दी ठेठ हिन्दी जात हिन्दी नाम हिन्दी है,

यही मजहब यही फिरका यही है खानदां मेरा।

मैं इस उजड़े हुए भारत का यक मामूली जर्रा हूँ,

यही बस इक पता मेरा यही नामोनिशाँ मेरा।

मैं उठते-बैठते तेरे कदम लूँ चूम ऐ भारत ,

कहाँ किस्मत मेरी ऐसी नसीबा ये कहाँ मेरा।

तेरी खिदमत में ऐ भारत ! ये सर जाये ये जाँ जाये,

तो समझूँगा कि मरना है हयाते-जादवां मेरा।

   करतार सिंह सराभा  की लिखी उक्त गज़ल को भगत सिंह अपने पास रखते थे और अकेले में गुन गुनाया करते थे।

उदय वीर सिंह।


सोमवार, 22 मई 2023

ये रायशुमारी कैसी है


 





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घर के  चोरी सामान  हुए  पहरेदारी कैसी है।

सब जर जेवर नीलाम हुए जिम्मेदारी कैसी है।

दुखियारों से पूछ रहे अपने  दुख संताप कहो

दुख के नाम निशान नहीं रायशुमारी कैसी है।आंसू ,याचन आंखों में पीड़ा हृदय समंदर सी,

सच कहना अपराध हुआ ये पैरोकारी कैसी है।

मंचो  पर काव्य मंजरी रस अलंकार के निर्झर

चौक चौबारे पगडण्डी निर्बल को गारी कैसी है।

उदय वीर सिंह।

रविवार, 14 मई 2023

रास्ते चौड़े हुए...







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राजपथ चौड़े हुए  रफ्तार  दे गए।

टूटे आशियाने  दर्द बेशुमार दे गए।

दरारें दिलों की कम नहीं चौड़ी हुईं

होगा और इज़ाफा इश्तिहार दे गए।

उजारे  वहां आये जहां रौशनी रही,

अंधेरों में बस्तियां अंधियार दे गए।

रंगमहलों  की  खुशियां मान हो गईं

गरीब झोपड़ को लानतें हजार दे गए

चैनो खुशी अमन ले गए ग़ुरबत देकर,

लौटाने का वादा था इंतजार दे गए।

बंद हुए शिक्षालय मदिरालय आबाद

औजारों की जरूरत हथियार दे गए।

उदय वीर सिंह।

रविवार, 7 मई 2023

शुचिता ही निर्धन हो जाये...








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फेंक  निकालकर  दूर उसे 

      जब रहबर रहजन हो जाए।

क्यों जाना उस महफ़िल में

           जब पीड़ा  प्रहसन हो जाये।

भीड़ बढ़ी मदिरालय में

           मानों  विध्वंश  की  भोर  हुई,

अवश्यम्भावी है विनाश

                 जब ग्रंथालय निर्जन हो जाये।

मद पाप भरे कंचन घट में

                      पद  पूजन का आमंत्रण  हो,

यह सर्वनाश का लक्षण है

                   जब शुचिता ही निर्धन हो जाये।


उदय वीर सिंह।

शनिवार, 6 मई 2023

प्रहसन हो जाती है

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सुखासीन की मदिरा,नीर आचमन हो जाती है।

एक गरीब बेबस की पीड़ा प्रहसन हो जाती है।

षडयंत्र  के  कंचनी मदमस्त वहशी  दरबारों में 

मजलूम की  लाज निर्मम निर्वसन हो जाती है।

दासत्व पाकर  भी  गरीब दया  का याचक रहा,

स्वामी-समर्थ की गालीआशीर्वचन हो जाती है।

हयाती रंगमहल भव्य राजपथ विबाईयों पर मौन

निर्बल की काया दुखों का परिवहन हो जाती है।

उदय वीर सिंह

शुक्रवार, 5 मई 2023

सरदार रखते हैं...


 





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संत व सिपाही की फितरत सरदार रखते हैं।

सत्ता  नहीं  शासन  नहीं  सरोकार  रखते हैं।

किसी ने रचे खांचे,तहखाने दौलत के वास्ते,

पीरोंने आशियाने बनाये उसमें प्यार रखते हैं।

एक इंसान को जरूरत नूरी इंसानियत की है,

समतल धरातल की उम्मीद आधार रखते हैं।

हम आदमी हैं ये तार्रुफ़ क्या काफी नहीं वीर

क्यों झूठी शान में ऊंची-नीची दीवार रखते हैं।

उदय वीर सिंह।

बुधवार, 3 मई 2023

घर-बार मांगने गए






 🙏नमस्कार सुधि मित्रों !

पत्थरों से गुलो-गुलशन  प्यार  मांगने गए।

मुसाफ़िर रहजनों से अधिकार मांगने गए।

अभी यकीन था अपनी पाक बेगुनाही पर

शहर तूफ़ानों सेअपना घर-बार मांगने गए।

पढ़कर अखबार की सुर्खियों में छपा बयान

बागबां बेरहम पतझडों से बहार मांगने गए।

सरगोशियां थीं सच को सच ही कहा जायेगा

झूठ की मंडियां सदका सदाचार मांगने गए।

नदी  जानती है गुमनाम हो जाएगी सागर में

डूबते  मुसाफ़िर भंवर से पतवार मांगने गए।

उदय वीर सिंह।

सोमवार, 1 मई 2023

मजदूर दिवस की बधाई






 🙏विश्व श्रमिक दिवस की बधाई मित्रों 🌹

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हर हाथ को औजार मिले काम मिले।

श्रमिक  को  श्रम  का पूरा दाम मिले।

जहां से द्वार प्रगति के बनते खुलते हैं

उन्हें न्याय सहकार मिले सम्मान मिले।

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श्रम-विंदु का मोल उच्चप्रतिमान मिले।

त्याग तपस्या अर्पण का प्रतिदान मिले।

अधरों  पर  मुस्कान  भरोषा  दिल में हो,

स्वास्थ्य सुरक्षा रोटी कपड़ा मकान मिले।

उदय वीर सिंह।

बुधवार, 26 अप्रैल 2023

चलते रहे तो सहर है ..








🙏नमस्कार सुधि मित्रों !

दिल  में  हौसला  है हसरत है तो सफ़र है।

शब कोई सराय नहीं चलते रहे तो सहर है।

बुलंदियों ने आवाज नहीं  दी  किसी शै को

कद  गुरुर का छोटा हो जाये  तो जफ़र है।

पहचान ले अपना अक्स आदमी आईने में,

जब महफ़ूज शहरी हैं दहशत से तो शहर है।

उदय वीर सिंह।

शनिवार, 22 अप्रैल 2023

जिंदगी तमाशाई न थी.✍️


 



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कितनी सगी थी अपनी थी पराई न थी।

संवेदनशील थी जिंदगी तमाशाई न थी।

पड़ोसी चूल्हा जला कि नहीं ,जांच लेती,

जमीन पर थी आकाश की ऊंचाई न थी। 

साग तेरा, मक्के की रोटी मेरी बांट लेते,

दाल-रोटी  तो थी बज्र सी महंगाई न थी।

माफ कर, माफ़ी  मांग  लेते खताओं  की,

रिश्तों में दर्द था  रकीबपन रूखाई न थी।

हंस कर भूल  जाते कहे का मलाल न था

वीर मोहब्बत से बढ़ कर  कोई दवाई न थी।

उदय वीर सिंह।

सोमवार, 17 अप्रैल 2023

सच्चाईयां लिखूं ✍️








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 किसी  की  बुराईयां   लिखूं

    किसी की अच्छाइयां लिखूं।
इससे बेहतर है कलम कि मैं
         जीवन की  सच्चाईयां लिखूं।
***
भीड़ कभी लश्कर नहीं बनते
       नकल कभी नजीर नहीं बनते।
दरवेश   तो   दरवेश  होते  हैं
            दरवेश कभी वजीर नहीं बनते।
उदय वीर सिंह।

व्याज मूल हो गया


 .





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कल  तक एक पेड़ था आज बबूल हो गया।

कलतक अनुकूल थाआज प्रतिकूल हो गया।

मौसम अजीबोगरीब है या हमारी अक्लियत,

कल  तक जो कांटा  था आज फूल हो गया।

ये  दीवारें  हैं इनपर घर बने अपने हिसाब से

कभी दीनी कभी सियासती मकबूल हो गया।

जितना  चुकाया  अबूझ बढ़ता ही गया कर्ज

सरल भाषा में समझा गया व्याज मूल हो गया।

उदय वीर सिंह।

शनिवार, 15 अप्रैल 2023

बैसाखी " खालसा साजना दिवस"


 




🌹 बैसाखी 🌹 

" खालसा पंथ साजना दिवस"

खालसा मेरो रूप है खास...

  - दशम पातशाह।

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बैसाखी आयी यश धन- धान्य  आया।

यतीमी  से  मुक्ति का  फरमान आया।

' ख़ालसा पंथ 'का दिव्य सूरज निकला, 

प्रेम  दया  बराबरी  का  सुल्तान आया।

जान  आयी  मुर्दों में,शमशान शहर हुए,

शानो सम्मान  फतह  का मुकाम आया।

खत्म  हुए  गुब्बारो  गंद  युगों के  छाए,

गुरु सिक्खीका उजला आसमान आया।

उदय वीर सिंह।

मंगलवार, 11 अप्रैल 2023

था आया सगा बन...


 





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था सगा बनके आया, गया घर जलाकर।

थे  बने  चित्र  सुंदर , गया  वह मिटाकर।

नीर  निर्मल  मुसाफ़िर  को  देते  सरोवर,

वैर इतना  पथिक से गया विष मिलाकर।

कितने अरमान  से  पथ  मसीहों ने साजा,

वह  गया  राह  समतल  में रोड़े बिछाकर।

विस्वास  का वध  कुछ  इस तरह हो गया

अश्व छीना ऋषि से, शीश अपना नवाकर।

अब  कहाँ  जाएंगे उड़  परिन्दे  न  मालूम

उजड़े बीरां चमन से डाल अपनी गंवाकर।

उदय वीर सिंह।

शनिवार, 8 अप्रैल 2023

सरमायेदार लगे हुए





 


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झूठ को सच  बनाने  में पैरोकार  लगे  हुए।

तसव्वुर  की  तारीफ़  में  इश्तिहार लगे हुए।

एक तीली की लगाई आग शहर जलने लगा,

बेलगाम हुई आग  तमाशाई हजार  लगे  हुए।

कभी शर्म भी शर्माती होगी बेलाग बेशर्मी पर,

बेशर्मी की सलाहियत में सरमायेदार लगे हुए।

मजलूम बेकसों की मजबूरी समझ मेंआती है कर्जमाफ़ी की सतर में खुद मालदार लगे हुए।

उदय वीर सिंह।

शुक्रवार, 7 अप्रैल 2023

सुनहरा दौर आएगा।

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ये उजड़ा हुआ चमन फिर से लहलहायेगा।

फिर पाक नेमतों का सुनहरा दौर आएगा।

उतर  जाएगी धूल गर्द बरसेगा साफ पानी

मुरझाया हुआ गुलशन फिर से मुस्करायेगा।

तूफ़ान की फ़ितरत से वाक़िफ़ है जन-जीवन,

तामीरपसंद हाथों फिर अपना घर बनाएगा।

परिंदा  जानता  है  मोहबत  का  घर अपना,

मंदिर कभी मस्जिद मुडेरों से नगमा सुनाएगा

उदय वीर सिंह।

गुरुवार, 30 मार्च 2023

निकाले बैठे हैं...







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स्वागत की बेला में हम,

         तलवार निकाले बैठे  हैं।

नाव भंवर की ओर चली

            पतवार संभाले बैठे हैं।

पूछ रहे हैं पीर कहां है,

               घायल मानस संकुल से

अपना घर अपनी बातें, 

                अखबार निकाले बैठे हैं।

नफरत की बाजारों में

                 प्यार डरा सहमा - सहमा

दिल के आंगन में ऊंची

                    दीवार  निकाले  बैठे है।

तज अतीत अपना पीछे

                पर  अतीत  को  खोज  रहे,

अपने सिर की खबर नहीं

                  पर की दस्तार उछाले बैठे हैं।

उदय वीर सिंह।

गुरुवार, 23 मार्च 2023

सहादत दिवस शहीदे आजम सरदार भगत सिंह ...


 




🙏कोटिशः प्रणाम ! विनम्र भावभीनी श्रद्धांजलि ,🌹

शहादत दिवस ( 23 मार्च 1931 सेंट्रल जेल लाहौर ) पर ' शहीदे आजम ' सरदार भगत सिंह,अमर शहीद राजगुरु जी,अमर शहीद सुखदेव जी को ..🌹🌹

***

मेरे जज्बातों से वाकिफ़ है इस कदर कलम मेरी,

इश्क लिखना चाहूँ इंकलाब लिखा जाता है।

- शहीदे आजम भगत सिंह।

****

शहीदे आजम तुम्हें खोकर

बहुत रोया है चमन,

तेरे दीये की रोशनी आफ़ताब हो रही है।

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बर्बाद न कर सकी हिन्द को 

हुकूमत-ए-नामर्द,

चले मर्द ,मसीहा-ए-इंकलाब चमन आबाद करके।

***

तेरी शहादत ने सियासत नहीं मुकाम दिया है।

नस्लों को इंकलाब खोया हिन्दुस्तान दिया है।

रखा  दिल  में वतन कदमों में तख्तो  ताज 

तेरी सरफरोशी ने वतन को पहचान दिया है।

उदय वीर सिंह।

मंगलवार, 21 मार्च 2023

गुलाम से प्यार ..


 





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ये कान  फ़रेब पर ऐतबार जियादा करते हैं।

ये मालिक गुलाम से पियार जियादा करते हैं।

पगार तो मुई खलिस दूज का चांद लगती है,

दरबारी  इनाम  से  पियार जियादा  करते हैं।

जमाना मशगूल रहता है तलाश में हीरे  की,

जमाल से कमतर इश्तिहार जियादा करते हैं।

कांटों की वसीयत में फूलों की चाशनी रखते,

मक्कार भरोषे का कारोबार जियादा करते हैं

उदय वीर सिंह।

रविवार, 12 मार्च 2023

हर आंख सवाली नहीं होती...


 






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माना कि यहां सवाल बहुत  हैं जी,

मगर हर आँख  सवाली नहीं होती।

माना कि बहुत कमीं है मसर्रत की,

मगर  हर  झोली  खाली नहीं होती।

माना  बाजार नफ़ा- नुकसान का है, 

मगर हर सौदों  में दलाली नहीं होती।

हसरतों को जमीन मिले सब चाहते हैं,

होली तो किसी की दिवाली नहीं होती।

तन का लाल खून बहता जिस नस से

वह गोरी  किसी की काली नहीं होती।

उदय वीर सिंह।

शनिवार, 11 मार्च 2023

जमाने लगे.....


 






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जमाने  लगे  सच का सत्कार करने में।

पल  न  लगा झूठ का व्यापार करने में।
जलता रहा दौर  साजिशो  फ़रेबी आग,
लश्कर लगे रहे सच को लाचार करने में।
झूठ  की परत अनवरत मोटी होती गयी,
झूठ  लगा रहा सच को तार तार करने में।
झूठ की  सोहबत शौक, शान  बनने लगी,
मौत नसीब हुई सच को स्वीकार करने में।
ये सच है कि सच कोई फूलों की सेज नहीं
बहुत  मुश्किल  है सच पे एतबार करने में।
उदय वीर सिंह।
10।3।23

बुधवार, 8 मार्च 2023

अंतराष्ट्रीय महिला दिवस


 


.विश्व महिला दिवस  (8 मार्च)की

बधाई मित्रों !..✍️


संस्कार की बात करें तो कलम
संस्कारी हो जाये।
पूर्वाग्रहों  को तोड़ मुख्य-धारा में
नारी हो जाये।
ताड़ना की अभिव्यक्ति को  मोक्ष
दे पाएं,
नारी समतल धरातल की निर्विवाद
अधिकारी हो जाये।
उदय वीर सिंह।

रविवार, 5 मार्च 2023

इश्तिहारों से मिलते हैं...







 .

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चलो हम इश्तिहारों से मिलते हैं।

खूबसूरत रंगो बहारों से मिलते हैं।

ठहरा खाली पेट  कोई बात नहीं,

भरे हुए कागज़ी नारों से मिलते हैं।

ये जमीन तो कदमों के नीचे है जी,

चलो सूरज चांद तारों से मिलते हैं।

आमो-खास के हैं ये दयार खुले हुए,

चलो  ऊंची  दीवारों  से  मिलते हैं।

अमन तो आग से है कोई बचा नहीं,

चलो हारे हुए किरदारों से मिलते हैं।

मिठास पकवानों के ख़्वाब में रह गई,

हैं  खाली हाथ त्योहारों से मिलते है

उदय वीर सिंह।

शनिवार, 25 फ़रवरी 2023

" बंजर होती संस्कृति"


 




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नई दिल्ली विश्व पुस्तक मेले के आयोजन (25।2।23 से5।3।23) को हमारी हार्दिक बधाई व नेह भरी शुभकामनाएं। इस अनुपम मेले का अपना विशिष्ट अतीत स्थान व गौरव है।

 हमें आत्मिक खुशी है कि इस पुस्तक मेले में, हाल संख्या-2 स्टाल न. 387 पर " हंस प्रकाशन " द्वारा प्रकाशित मेरी पुस्तक * बंजर होती संस्कृति * की भी उपस्थिति होगी।

    आप सबकी आशीष व स्नेह मिलेगा मेरा दृढ़ विस्वास है।

उदय वीर सिंह।

अपना मायिना है...


 






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कोई दक्ष, बाम किसी का दाहिना है।

पांव की रफ़्तगी मंजिल को नापना है

यह बात अलग  है हम  पढ़ नहीं पाए,

हर  तख़लीक़  का अपना  मायिना है।

रखना  मजबूरी नहीं  एक  जरूरत  है,

हर  एक शख़्श का अपना आयिना है।

पत्थर  को कभी फूल नहीं कहा शीशा

यह  जानकर  भी  कि उसको टूटना है।

उदय वीर सिंह।

शुक्रवार, 24 फ़रवरी 2023

जफ़र किस काम का होगा..

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हम ख़ुशहाल हुए जी, दूसरों को दर्द देकर।

सोए खूब दूसरों को जागने का फर्ज़ देकर।

विपदा  में अवसर तलाशा मोटी कमाई का, 

मालामाल  हुए  मोटे व्याज का कर्ज़ देकर।

खून-पसीने का मोल अदा किया  इस तरह,

हमने वापस किया जी लाइलाज़ मर्ज़ देकर।

फिज़ाओं का बे-सरहद होना बे-अदब माना,

नंगा  किया शज़र को  हमने पत्ते  ज़र्द देकर।

उदय वीर सिंह।

शनिवार, 18 फ़रवरी 2023

खोया खोया मिलता है....

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पाखंड  की   प्रचीर  में सत्य 

कहीं खोया-खोया मिलता  है।

पाखंड रत जगराते में है सत्य 

कहीं  सोया- सोया  मिलता है।

अहंकार  मद  की  पूंजी  का 

गगनचुम्बी होना आश्चर्यजनक

सत्य ,सरलता की भूमि में कांटा 

तमाम  बोया -बोया मिलता है।

टूट गया तर्कों का धागा,साहस 

सीने  में  रोया - रोया मिलता है

हमने अपनी हार को भी जीत

कहना  सीख  लिया   जबसे,

विजय अनुसंधान का परिमल

कहींअनाम  लकोया मिलता है।

उदय वीर सिंह।


फ़रेब की छत गिरी है,....

 🙏🏼नमस्कार सुधि मित्रों!

बुलंदियों पर रही नफ़रत तो प्यार भी मुमकिन।

फ़रेब की छत गिरी है,  तो दीवार भी मुमकिन।

दर्द का बुत  हो  जाना  दहशत की पेशबंदी है, 

कागज  है कलम है , तो अख़बार भी मुमकिन।

रंग कोसने लगे अपनी मुख़्तलिफ़ पैदाइशों पर

सवाल उनकी हाजिरी पर तकरार भी मुमकिन। 

बे-वक्त है माजी के पन्नों का,सरे-आम हो जाना

कागजी कारवां है कागजी सालार भी मुमकिन।

उदय वीर सिंह।

रविवार, 12 फ़रवरी 2023

रखें तो कहां रखें....


 






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तेरी कागज की बागवानी रखें तो कहां रखें।

बे-मतलब की  मेहरबानी  रखें  तो कहां रखें।संवेदी शब्दों की कमीं नहीं बोल कर तो देखो,

मुझे नापसंद है बद्दजुबानी रखें तो कहां रखें।

कुछ जमीरो जमीन की बात होतो गौर भी करें

तेरी बे-सिरपैर की कहानी रखें तो कहां रखें।

जमीं पर फैली आग आसमान भी कितना दूर,

दुश्वार दो दिन की जिंदगानी रखें तो कहां रखें।

उदय वीर सिंह।

रविवार, 5 फ़रवरी 2023

कम पानी क्यों है..






 
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इंसानियत से इतनी  परेशानी क्यों है।

कांटों की चारो तरफ बागवानी क्यों है।

जुल्म तो  आख़िर  जुल्म ही ठहरा जी,

सितमगरों पर इतनी मेहरबानी क्यों है।

अमन  की  किताबों  का हवाला देकर,

अमन  से  ही  इतनी  बेईमानी  क्यों है।

जो आपको अच्छा नहीं दूसरों को कैसे,

प्रीत की दरिया इतना कम पानी क्यों है।

अंगारों  को फूल कहने  का शौक देखा,

मसर्रती जमीं पे दर्द की कहानी क्यों है।

उदय वीर सिंह।

कमाल के धंधे...


 





🙏🏼नमस्कार सुधि मित्रों!

अर्थ के नाम पर  कमाल के धंधे।

धर्म के  नाम  पर कमाल  के बंदे।

एक बहाना चाहिए लूटने के लिए,

सहारा के नाम पर कमाल के कंधे।

देखते हैं सब कुछ परहेज बोलने से,

दीद  के  नाम  पर कमाल के अंधे।

बेख़ौफ घूमते कत्लेआम के मुल्जिम,

डर  के  नाम  पर ये कमाल  के डंडे।

कायम कई दीवार  दिखाई नहीं देतीं,

दहशत के नाम पर कमाल  के फंदे।

उदय वीर सिंह।

5।2।23

रविवार, 29 जनवरी 2023

" बंजर होती संस्कृति "






 🙏🏼 नमस्कार सुधि मित्रों!

क्षमा प्रार्थी हूँ आप सभी सुधि मित्रों स्नेहियों का ,मेरी पुस्तक  " बंजर होती संस्कृति " (कहानी संग्रह )सरलता से उपलव्ध होने में देर व कठिनाई हुई। पुस्तक आमेजन व फ्लिपकार्ट पर अब उपलव्ध है।आप इसे अब प्राप्त कर सकते हैं। दिल्ली के स्नेही जन ,पाठक इसे हंस प्रकाशन /डिस्ट्रीब्यूटर से भी आसानी से ले सकते हैं। सुदूर के मित्र नीचे दिए लिंक से प्राप्त कर सकते हैं।-

https://www.amazon.in/gp/product/9391118372/ref=cx_skuctr_share?smid=A2ZXCEXTVOQ71E

  आप सभी से निरंतर प्राप्त हो रहे प्यार व शुभेक्षाओं का सदैव ऋणी हूँ।आपका निर्देश व अनुशंसाएं सर्वथा स्वीकार।

उदय वीर सिंह।

फ़िजाएँ बेईमान लगती हैं...







 🙏🏼नमस्कार मित्रों !

मुकद्दस  हवाएं  भी परेशान लगती हैं।

पातों की खड़खड़ाहट तूफान लगती हैं।

आग से शोर तो लाजमी है  बस्तियों में,

महलों की कैफ़ियत शमशान लगती हैं।

गिर रहे पत्ते पेड़ों  से कितने जर्द होकर,

ये फ़िजाएँ बसंत की  बेईमान  लगती हैं।

उड़ रहे परिंदे दरख़्तों से,पा कोई आहट,

आरियों की आमद शाखें नीलाम लगती हैं।

कागज़ी फूलो गुलशन का जमाल कायम,

गंध-पसंद तितलियां  मेहरबान लगती हैं।

उदय वीर सिंह ।

शनिवार, 28 जनवरी 2023

समाचार हो गया....


 





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पन्ना  मेरी जेब का अख़बार हो गया।

दर्द मेरा अपना था समाचार हो गया।

मैंने दर्द में दीआवाज कोई नहीं आया , 

मेरी खुशी से सबका सरोकार हो गया।

खंडहरों ने भी मना किया पनाह देने से

तूफान से तबाह मेरा घर-बार जो गया।

सब लौटआये छोड़कर मुझे जाने वाले,

जब  कामयाब  मेरा कारोबार हो गया।

चले गए बे-मुरौअत मेरा हाथ छोड़कर,

जब मेरे  ऊपर ढेर सारा उधार हो गया।

मैं  छोड़ आया बे-फिक्र बहारों की गली

जब  कांटो  पर  मुझे पूरा ऐतबार गया।

नासमझ था खुली थी जब अपनीआंखें 

बंद कर ली आंखें  समझदार जो गया।

उदय वीर सिंह।

शुक्रवार, 27 जनवरी 2023

आजादी जिंदाबाद...


 





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लिखना चाहूँ प्रेमगीत कोशिश बेकार जाती है।

हमारी  जज्बातों  की  मारी कलम हार जाती है।

पत्थरों  ने  सजा दी  उसे न जाने किस बात की,

अपनी पूछने  गुस्ताखियां  वह हरिद्वार जाती है।

मंसूख हो जाएगी अर्जी पहले भी कईबार भेजी,

ये जान कर भी उस दहलीज कई बार जाती है।

बिछाती है ओढती है अपनी हमसफ़र मुफलिशी

चाहती अपनाआशियाना  महँगाई मार जाती है।

उदय वीर सिंह।

रविवार, 22 जनवरी 2023

सालार बनता गया...








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साज़िशों की आग,आदमी लाचार बनता गया।

जब ना रही दीवार झोंका रफ़्तार बनता गया।

ख़ामोश लबों की मजलिस का हस्र हुआ वीर,

तालिबों अदीबों का,गूंगा सालार बनता गया।

दाग़दारों ने मनाया जश्न जबआईना तोड़ा गया,

राग - दरबारी मिलते गए  दरबार बनता गया।

चली जहालत की आंधियां, टूटने लगे उसूल,

जब मूल्य बिकने लगे घर,बाजार बनता गया।

टूटी हमदर्दी की हर कड़ी दर्द की सर्दियां आईं

मसर्रत आयी फासला रिश्तेदार बनता गया।

उदय वीर सिंह।

21।1।23

शुक्रवार, 20 जनवरी 2023

जाल पर्दे में है।


 



..मशाल पर्दे में है..✍️


अंधेरा तब तक है जबतक मशाल पर्दे में है।

ख़ामोशी तबतक है जबतक सवाल पर्दे में है।

सड़कें उदास, सन्नाटों से भरी ,माजरा क्या है,

वीरानगी तबतक है,जबतक जमाल पर्दे में है।

रंगों शबाब महफ़िल का मुकम्मल नहीं हुआ,

जश्न आधा अधूरा है जबतक गुलाल पर्दे में है।

हर जुबां तहरीरो वरक तस्दीक में नज़र आये,

बुलंदियां  ख़्वाब हैं जब तक ख़्याल पर्दे में है।

बहेलिए की मकबूलियत इश्तिहारों से मिली,

दाने तो ऊपर-ऊपर दिख रहे जाल पर्दे में है।

उदय वीर सिंह।

मंगलवार, 17 जनवरी 2023

सभागार वहशी जो जाए...


 




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सभागार वहशी हो ..

क्या  होगा सत्य का जब 

समाचार वहशी हो जाये।

क्या होगा कलम का जब 

अख़बार वहशी हो जाये।

क्या होगा निति व नियोगों 

का जब वो कर्क बनने लगें,

क्या होगा द्रौपदी का जब,

सभागार  वहशी  हो जाये।

क्या होगा मुसाफ़िरों का जो

सिम्त वसूलने लगे खिराज,

क्या  होगा साँसों  का  जब

बयार  वहशी   जो   जाये।

मुखबिर  हो  जाये दहलीज

दे  जब  आंगन  ही  रुसवाई

क्या  होगा  मंगल कंगन का

जब  कटार  वहशी हो जाये।

उदय वीर सिंह

शनिवार, 14 जनवरी 2023

काल -कथा है कहने दो...






 काल-कथा है कहने दो..✍️

सरिता है मत अवरोध बनो

धारा अपनी बहने दो।

हर तट तीरथ की अपनी

काल-कथा है कहने दो।

काल-खंड के भावों को 

व्यक्त किया अनुरागों से,

क्या लिखा है पाती जातक

पढ़ रहा है पढ़ने दो।

जीवन को कारागार नहीं

द्वेष-मुक्त शिक्षालय हो

समता की उर्वर वसुधा में

अभेद वृक्ष को पलने दो।

आडंबर पाखंडों की ध्रुव,

अनुशंसा प्रतिबंधित हो,

क्यों संशय है कुंदन पर 

ताप अनल के जलने दो।

सत्य अनावृत होता हो,

 करतल ध्वनि की गूंज उठे

असत्य,प्रलाप,प्रपंचों को

अग्निशिखा में जलने दो।

उदय वीर सिंह।

बुधवार, 11 जनवरी 2023

नसीब लिखने लगे.....




 🙏🏼नमस्कार सुधि मित्रों !


कल तक थे दोस्त ,रक़ीब लिखने लगे।

कलमआयी हाथ तो नसीब लिखने लगे।

अमीरों  की  फेहरिश्त  में नाम जिनका,

सुन मुनादी ख़ैरात की गरीब लिखने लगे

दी हवा सारेआम आगजनी की जिसने,

रहजनों के सालार तहजीब लिखने लगें।

ये दौर भी गिरावट बदला तो खूब बदला

अदीब जांनिसारी के अजीब लिखने लगे।

उदय वीर सिंह।

रविवार, 8 जनवरी 2023

चिराग़ों का मिजाज अपना है...


 



🙏🏼नमस्कार सुधि मित्रों !


ख्वाहिश नहीं कोई सूरज  ,चांद होने  की,

दहलीज के चिरागों का मिज़ाज अपना है।

खून  और  आसुओं  का  मुजस्सिम  नहीं,

कायम रहे दस्तार सिर का ताज अपना है।

जरूरत  नहीं  किसी  संगीत वाद्य यंत्रों की,

अलबेली  कोयल  का  सुर साज अपना है।

करते फतह मंजिल मुश्किलों को तार करके,

राहअपनी ही चले उनका अंदाज अपना है।

उदय वीर सिंह।

रविवार, 1 जनवरी 2023

🌷नूतन वर्ष 2023 🌷


 



🌷 नूतन वर्ष 2023 🌷

प्रश्न भी रहे समाधान भी...✍️

ये  देश भी रहे संविधान भी रहे।

प्रश्न  भी  रहे  समाधान भी रहे।

दिल  भी  रहे  अरमान भी  रहे। 

हिन्दू  भी रहे मुसलमान  भी रहे।

बड़ी शिद्दत से इंसानियत के वरक 

रोटी  व  कपड़ा मकान  भी रहे।

हो नमींआंख में शबनमीं हो जमीं,

इंसान भी रहे स्वाभिमान भी रहे।

उदय वीर सिंह🌷

अलविदा 2022


 




अलविदा.... 2022..✍️


किताबों  के  घर हथियार नहीं रखते। 

इंसानियत फले फूले दीवार नहीं रखते।

रुख़सत हुआ जाता है ये पुराना साल,

रवायत है नक़द की उधार नहीं रखते।

कह रहा है सदा अमन की फिक्र करना,

नफ़रत से  कोई  सरोकार नहीं रखते।

जाते हुए साल से बेहतर हो नया साल ,

हो बहारों की आमद खार नही रखते।

समय को उकेरा है समय के खांचों में,

दरबारों कीआस कलमकार नहीं रखते।

उदय वीर सिंह।