मंगलवार, 30 दिसंबर 2014
रविवार, 28 दिसंबर 2014
दशम पातशाह गुरु गोबिन्द सिंह जी

दशवें पातशाह ,गुरु गोबिन्द सिंह साहिब जी महाराज
[ दिसंबर 1666 पटना शहर (बिहार) - अक्तूबर 1708 नांदेड़( महाराष्ट्र )] के पावन प्रकाश पर्व पर हृदय से आप सबको लख-लख बधाई एवं शुभकामनाएं,वाहे गुरु से सभी दुनियावी जीवों की खुशहाली व सलामती की अरदास ।
*****
उजड़े हुये थे बसाये गए हैं
तेरे नूर से हम सजाये गए है -
तेरे नूर से हम सजाये गए है -
हुए हम पाकीजा तेरा करम है ,
लाखों में हम एक बनाए गए हैं-
तेरी रहमतें बिन मागे मिली हैं
मुर्दे भी सोये जगाए गए हैं -
तू सबमें समाया,तेरा नूर दाते
सिर सिजदे में तेरे झुकाये गए हैं -
उदय वीर सिंह
गुरुवार, 25 दिसंबर 2014
चाहता हूँ प्रेम लिखना ..

लिख पाता हूँ -
नहीं बन पाता हूँ -
चाहता हूँ हसीं ज़ुल्फों में समा जाऊँ
पर गमजदों के पास आता हूँ -
रंग महलों की खुशी मुझे लुभाती है
झोपड़ी के पास ठहर जाता हूँ -
देख प्रतीक्षा में दोनों हैं एक मौत एक मांस की
मंजर देख सिहर जाता हूँ -
कोशिशे नाकाम हैं प्रेम गीत लिखने की
दर्द कहाँ भूल पाता हूँ -
न बता मुझे स्वर्ग भी कहीं रहता है उदय
अपनी शक्ल से डर जाता हूँ -
उदय वीर सिंह
सरोकार की बातों से...

सरोकार की बातें से क्यों बहक जाते हो
जब आती बात मुद्दों की सरक जाते हो
चढ़ा भावनाओं की कड़ाही दहक जाते हो
छिड़ी बात संवेदना के गहरी उदासी की
कह राजनीति की बात निकल जाते हो -
दरबारी कवि भी, पीछे गए भाड़पन में
शोला को ,शबनम का नाम दे जाते हो
नंगे तन पर हजार लाइक तो बनती है
देख बेबस को रास्ता कैसे बदल जाते हो -
उदय वीर सिंह
मंगलवार, 23 दिसंबर 2014
किसान [अन्नदाता ]
ले कुदालों से

मसरूफ़ था दानों को उगाने में
फिर भी
आई मुफ़लिसी हाथ
लाचारी ,
रह गयी अधूरी शिक्षा बच्चों की ,
तन बन गया
व्याधियों का घर ...
विवशताए बन गईं पहचान
मशीनीकरण का दौर
भी आया
न उबर सका है अन्नदाता !
कर्ज से
मर्ज से ,
गुरबती से....
अफसोस ! अभिशप्त जीवन से
मुक्ति का मार्ग
चुन पाया है
आत्महत्या
विभत्सता की पराकाष्ठा .....।
उदय वीर सिंह
शुक्रवार, 19 दिसंबर 2014
बेबे ! .....सुहेले तेरे हथ !.
बेबे ! छुटगे सुहेले तेरे हथ !...
अस्सी याद तैनुं बहुत आवांगे-
कोसां दूध दी कटोरी गयी डुल
फेर अस्सी किथे पावांगे-
कोण पुंजेगा हंजू तेरे अंख दा,
कोल आके फेर नस जावांगे-
आ दसुंगे गल सुपने विच पीड़ दा,
बेबे ! दासता मैं मौत दी सुना जावांगे-
अस्सी याद तैनुं बहुत आवांगे-
कोसां दूध दी कटोरी गयी डुल
फेर अस्सी किथे पावांगे-
कोण पुंजेगा हंजू तेरे अंख दा,
कोल आके फेर नस जावांगे-
आ दसुंगे गल सुपने विच पीड़ दा,
बेबे ! दासता मैं मौत दी सुना जावांगे-
उदय वीर सिंह
[ हिन्दी भावार्थ ]
अम्मा तेरे सुभागे हाथ छुट गए
हम भी आप को बहुत याद आएंगे
गुंगुने दूध की गिलास हाथ से छूट गयी
फिर मुझे अब कहाँ मिलेगी -
अब तेरे आँखों के आँसू कौन पोंछेगा
हम पास का अहसास हो फिर चले जाएंगे
फिर सपने में आकर अपनी पीड़ा सुनाएँगे
अम्मा अपनी मौत की पूरी दासता सुनाएँगे-
उदय वीर सिंह
अम्मा तेरे सुभागे हाथ छुट गए
हम भी आप को बहुत याद आएंगे
गुंगुने दूध की गिलास हाथ से छूट गयी
फिर मुझे अब कहाँ मिलेगी -
अब तेरे आँखों के आँसू कौन पोंछेगा
हम पास का अहसास हो फिर चले जाएंगे
फिर सपने में आकर अपनी पीड़ा सुनाएँगे
अम्मा अपनी मौत की पूरी दासता सुनाएँगे-
उदय वीर सिंह
गुरुवार, 18 दिसंबर 2014
मेरे सवाल कभी संसद .....
मेरे सवाल कभी संसद नहीं गए,
वो अवाम के हैं ,आम लोगों के है -
किसी आभिजात्य दौलत मंदों के नहीं
बेकस ,मजलूम तमाम लोगों के हैं -
इत्तेफाक रखते हैं रोटी कपड़ा मकान से
विकास से अंजान लोगों के हैं -
जिनके दम पर खड़ी है वतन की इमारत
तामीरदार गुमनाम लोगों के हैं -
सियासत के मदरसों में ,मोहरे कहे गए
वतनपरस्ती में बदनाम लोगों के हैं -
रविवार, 14 दिसंबर 2014
आग तुममें भी है हममें भी है -
कश्मकश की जिंदगी बेकसी देती है, सिकंदर का
अंदाज हममें भी है तुममें भी है -
होगी फतेह हर ऊंचाई कामिल बुलंदियों की
जुनूने परवाज़ हममें भी है तुममें भी है -
उदय वीर सिंह
शुक्रवार, 12 दिसंबर 2014
न रहूँ किसी के लबों .....

न रहूँ किसी के लबों का सवाल बनकर
अच्छा है जलूँ तो कहीं, मशाल बनकर -
अच्छा है जलूँ तो कहीं, मशाल बनकर -
नागफनी सींचने से अच्छा है, बांझ होना
किसी गुलशन का रहूँ गुल गुलाब बनकर -
किसी गुलशन का रहूँ गुल गुलाब बनकर -
बेकस की मजबूरियाँ मुझे, बेदाग कर दें
अच्छा है जीउ जमाने में कहीं दाग बनकर-
अच्छा है जीउ जमाने में कहीं दाग बनकर-
फटे दामन का पैबंद बनना गवारा है मुझे,
लानत है रहना सिर पर खूनी ताज बनकर-
लानत है रहना सिर पर खूनी ताज बनकर-
यूं तो जानवर भी बोलते हैं गर्दिशी में उदय
जरूरत है जीना मजलूम की आवाज बनकर -
जरूरत है जीना मजलूम की आवाज बनकर -
उदय वीर सिंह
गुरुवार, 11 दिसंबर 2014
रविवार, 7 दिसंबर 2014
बेड़ी डूबती है -

आँधियाँ दे गईं ,तूफानों का नजराना
की बेड़ी डूबती है -
की बेड़ी डूबती है -
मजधार में मुसाफिर पतवार भी बेगाना
की बेड़ी डूबती है -
है माझी नशे में चूर मददगार है जमाना
की बेड़ी डूबती है -
शाहिल कट गए हैं ,मौजें हैं कतिलाना
की बेड़ी डूबती है -
कागज की नाव पंछी, चाहे है पार जाना
की बेड़ी डूबती है -
हौसलों की कब्र साथ ले चाहे है आजमाना
की बेड़ी डूबती है -
उदय वीर सिंह
गुरुवार, 4 दिसंबर 2014
बुधवार, 3 दिसंबर 2014
माँ से कौन ?
माँ से कौन ?
****
शिक्षक दिवस पर मुख्य अतिथि माननीय शिक्षा मंत्री महोदय विद्यालय के छात्रों को संबोधित कर रहे थे । बच्चों ! हमें समस्त धर्मों का आदर करना चाहिए, सारे धर्म मानव बनाने की आदर्श शिक्षा देते हैं । आपस में हम सभी भाई -भाई हैं । एक ईश्वर की संतान हैं । विश्व- बंधुत्व का भाव ही शांति और सम्मान का सूत्र वाक्य है । हमें एक दूसरे के उत्सवों, पर्वों को मिल कर मनाना चाहिए । कोई छोटा कोई बड़ा नहीं है । दया ,करुणा ,समता का भाव मनुष्यता का सर्वोच्च गुण हैं । इन्हें अपने जीवन में उतारना होगा ........
छत्रों ने मंत्री महोदय के प्रवचन रूपी भाषण को बड़े ध्यान से सुना और आपसी सद्भाव व प्रेम भाई चारा की सपथ ले घर वापस हुये ।
पा ! क्या मैं अपने मित्र प्रवीण जोशी को आने वाले गुरु पर्व में बुला लूँ ? वो मेरा बहुत अच्छा दोस्त है । मेरे पुत्र निहाल सिंह ने हमसे पूछा ।
बेटे क्यों नहीं । इसमे अनुमति की क्या बात है ,गुरु पर्व किसी एक का नहीं सबका है । मैंने कहा
पा ! कल के जलसे में मंत्री जी भी यही कह रहे थे । निहाल सिंह ने कहा ।
गुरु गोबिन्द सिंह जी महाराज के जन्म दिन पर प्रवीण जोशी व उसकी छोटी बहन मेरे घर आए मेरे बच्चों के साथ गुरुद्वारे में कीर्तन, कड़ा - प्रसाद व लंगर का आनंद उठाए । उहों ने मुझे शुक्रिया कहा। मैंने उनको अपनी गाड़ी से उनके घर भिजवा दिया । बच्चे बहुत खुश थे ।
एका दिन प्रवीण जोशी के घर कोई धार्मिक अनुष्ठान था । प्रवीण ने मेरे बच्चों को अपने घर आमंत्रित किया । निहाल ने हमसे कार्यक्रम में जाने की इजाजत मांगी । मैंने सहर्ष हामी भर दी । निहाल को मैंने नियत समय पर भेज दिया ।
काफी सर्दी थी अप्राहन भी प्रभात जैसा लग रहा था ,मैं कहीं जाने की तैयारी में था । पत्नी बोली
सुनते हो ?
हाँ जी ! बताओ । मैंने कहा ।
निहाल और सिमरन को प्रवीण के घर से आते समय ले लेना ।
कितने बजे ? मैंने पूछा ।
करीब पाँच बजे के आस पास । पत्नी ने कहा ।
मैं अपने काम निपटा कर वापस आ रहा था कि पत्नी ने फोन कर बताया ।
आप घर चले आइए बच्चे आ गए हैं ।
कैसे आए , मैं तो लेने जा ही रहा था ।
वो आ गए हैं ,कितना दूर है ही प्रवीण का घर । पत्नी ने बताया ।
मैं घर आ गया
थोड़ी देर बाद मैं निहाल को पुकारा
निहाल !
जी पा !
कैसा रहा मित्र प्रवीण जोशी के यहाँ का कार्यक्रम ? मैं सोचता हूँ खूब आनन्दा आया होगा ? मैंने मुदित होते हुये कहा ।
नहीं पा ! अच्छा नहीं रहा । बेटी सिमरन पास आकर बोली ।
क्यों ? मैंने प्रश्न किया ।
वीर जी को जोशी अंकल ने थप्पड़ मारा और डांटा । मायूष सिमरन ने लगभग रोते हुये कहा ।
मैं विस्मय से मासूम निहाल कभी सिमरन की ओर देख रहा था ।
सारी पा ! मैंने भी कथा करने वाले पंडित जी से एक प्रश्न कर दिया । हालांकि सभी पूछ रहे थे । मैं समझ भी नहीं पाया ,प्रवीन के पिताजी जोशी अंकल ने मुझे चांटा मारा और डांटा भी । और चले जाने को कहा ।
फिर हम और सिमरन आटो से घर चले आए , निहाल के गालों पर आँसू ढल रहे थे ।
आप ने क्या प्रश्न कर दिया की वो गुस्सा हो गए और हाथ छोड़ने की स्थिति बन गयी ।
पा ! पंडित जी प्रबचन में कह रहे थे कि -
ब्राह्मण मश्तिष्क से पैदा हुआ है ,क्षत्रिय भुजाओं से वैश्य उदर [पेट ] से और शूद्र पैर से पैदा हुआ है । ये हमारे समाज की सनातन संरचना है । अगर किसी को कोई शंका हो तो समाधान भी मेरे पास है ,निःसंकोच पूछ सकता है । मैंने अपनी शंका बताई कि
पंडित जी ! जब ये सारे विभिन्न अंगों से पैदा हुये तो माँ से कौन पैदा हुआ ? मेरी शंका का समाधान बताइये । यह सुन पंडित जी गुस्से में आग बबूला हों गए ।
ये दुष्ट कौन है ? बोले और मुझे निकल जाने को कहा । तभी प्रवीण के पिताजी मेरे पास आए और बांह पकड़ पंडाल से बाहर ले आए और अपमानित कर चले जाने को कहा ।
यह सुन कर मैं आक्रोश में आ गया । फोन मिला रहा था कि प्रवीण के पिता से बात करूँ । तभी मेरी पत्नी बोली ।
मत बात करो ! विवाद का कारण बनेगा । ये उनकी सोच है ,विवाद का विषद रूप बच्चों को उद्वेलित कर सकता है । मैं अपने को संयत करने कि कोशिश करने लगा ।
अपने अध्ययन कक्ष छत को देखते में सोच रहा था । ये नैशर्गिक बाल सुलभ प्रश्न को चाँटों ने विरमित तो कर दिया ,तिरोहित नहीं हुआ । कल समाज का प्रश्न बन बनेगा , माँ से कौन पैदा हुआ ? क्या चाँटों का प्रयास इनको तिरोहित कर पाएगा ? शायद नहीं ! यदि हाँ तो यह अपराध होगा ।
उदय वीर सिंह .
रविवार, 30 नवंबर 2014
शनिवार, 29 नवंबर 2014
अभिशप्त-वैभव

से नहीं ,
प्रेम, अभिलाषा ,
नैशर्गिक लालित्य,
अभिमंत्रित मंत्रों के
आव्हान से
आमंत्रित,
अतिथि का वध !
कोई शत्रु नहीं
स्वजनों के
तथाकथित मर्यादित
कर-कमलों से
गौरवमयी गाथा के
पुण्य निहितार्थ
होता है ,
कदाचित
एक देवी-प्रतिमा के रूप में
स्वीकार्य तो है ,
यथार्थ के धरातल पर
कन्या अभिशप्त !
कदापि
नहीं ......।
उदय वीर सिंह
गुरुवार, 27 नवंबर 2014
मंगलवार, 25 नवंबर 2014
गुरु तेगबहादुर सिंह [नवें पातशाह] हिन्द दी चादर

***
खून था किनकी रगो में
नीर था किनकी नजर -
प्यास किसकी खून की थी
कौन रोया दर - बदर -
किसकी दर ने लाज राखी
कौन थे कौमे- जिगर
आह थी और जुल्म था
यौमे जालिम ओ सितमगर -
इंसाफ की शमशीर किसकी
कौन थे कौमे मुकद्दर -
इंसानियत के कौन दुश्मन
कौन प्यारे हमसफर -
जीया जिन्होने हिन्द खातिर
गुरु सिक्ख थे नुरे नजर-
धरती गगन दोनों ही रोये
जब चले अंतिम सफर -
उदय वीर सिंह
बुधवार, 19 नवंबर 2014
तू कितना अनाड़ी है
देख ! तेरी वाल पर
गंदगी का अंबार ही अंबार
दिखाई देता है ।
दर्द,खुले जख्म, मुफ़लिसी ,यतिमी, लचारगी
आँसू ,फरियाद का कूड़ा है ।
स्वच्छता अभियान जारी है
क्यों नहीं लगा लेते ,
बर्मीघम शायर के परिधान
अल्जीयर के ट्यूलिप
रूसी गुलाब ........।
प्रतिष्ठा धूमिल हो रही है कुछ तो सोच
जैसा है वैसा दिखना,
नहीं चाहिए.।
दर्द में पैदा हुआ है तूँ,
दर्द के सिवा और क्या चाहिए ...?
पी ले शुद्ध गंगा जल
भूख को छिपाने का हुनर चाहिए ....
तू कितना अनाड़ी है ,
हम चाँद पर जाने वाले हैं
और तुझे जमीं
चाहिए ..........।
उदय वीर सिंह
गंदगी का अंबार ही अंबार
दिखाई देता है ।
दर्द,खुले जख्म, मुफ़लिसी ,यतिमी, लचारगी
आँसू ,फरियाद का कूड़ा है ।
स्वच्छता अभियान जारी है
क्यों नहीं लगा लेते ,
बर्मीघम शायर के परिधान
अल्जीयर के ट्यूलिप
रूसी गुलाब ........।
प्रतिष्ठा धूमिल हो रही है कुछ तो सोच
जैसा है वैसा दिखना,
नहीं चाहिए.।
दर्द में पैदा हुआ है तूँ,
दर्द के सिवा और क्या चाहिए ...?
पी ले शुद्ध गंगा जल
भूख को छिपाने का हुनर चाहिए ....
तू कितना अनाड़ी है ,
हम चाँद पर जाने वाले हैं
और तुझे जमीं
चाहिए ..........।
उदय वीर सिंह
मेरा ईमान होता

मेरा ईमान होता
किसी गरीब का ख्वाब हूँ
देखने दो जिसकी मुझे जरूरत है
बारिस की बुँदे
भिगो जाती हैं रुखसार के अष्कों को
मैं देखता रह जाता हूँ
कभी प्रिया को ,कभी आसमान को
एक घर होता-
मुकम्मल दाल- रोटी भी नहीं
कभी दाल तो कभी रोटी नहीं -
फैले हाथों को हिकारत से भीख तो मिल जाती है
काश काम मिलता -
स्वीटजरलैंड में जमा खातों के स्वप्न क्यों
नोफ्रिल खाते में दाम मिलता
सिमट जाता है किरोसिन का तेल
लैम्प से
बच्चे उदास हो जाते हैं बंद कर किताबें
तमस की बाढ़ में
उन्हें उजास मिलता ..
कह रही थी प्रिया करवां चौथ आ रहा है
इसी बहाने एक छाननी का
इंतजाम होता -
भूखे पेट योग का भी बहम क्या पालूँ
नीम और तुलसी का सेवन भी
उबाऊ हो गया है
मर्ज पर कोई मेहरबान होता -
मेरा चश्मा बापू को नहीं लगता
प्रिया की कमीज
बेटी को छोटी होती है
पैजामे में लगे पैबंदों को छिपाते बेटे को देखता हूँ
काश कोई बेचने का
समान होता .......
पूरे होते सपने तो शायद
मेरा ईमान होता
मैं भी तथा कथित
इंसान होता .....
उदय वीर सिंह
.
रविवार, 16 नवंबर 2014
मंगलवार, 11 नवंबर 2014
मंथर -मंथर .....

मंथर -मंथर .....
मंथर -मंथर नेह प्रिया, पग
वन सुंदरवन की ओट चला
पुण्य प्रसून किसने न दिए
शूल -प्रबोध से कौन छला-
तज्य प्रमाद आमोद भरे उर
कली किसलय सजी अचला
अभिनंदन है आमंत्रण है मधु
सृजने को ,किसने न कहा -
कली किसलय सजी अचला
अभिनंदन है आमंत्रण है मधु
सृजने को ,किसने न कहा -
संकुल , सौम्य , सुनेह , लली
कमनीय कन्त, की प्रेम कला
तरु छूअन से, हतभाग्य, नसा
कटु वीथीन को सौभाग्य मिला -
कमनीय कन्त, की प्रेम कला
तरु छूअन से, हतभाग्य, नसा
कटु वीथीन को सौभाग्य मिला -
उदय वीर सिंह
रविवार, 9 नवंबर 2014
शुक्रवार, 7 नवंबर 2014
आदि गुरु नानक देव जी [ THE PATH ]
आदि गुरु नानक देव जी [ THE PATH ]
हम मैले तुम उज्जल करते .......
." सतगुरु नानक परगटिया मिटी धुंध जग चानड़ होया "
मिती कार्तिक पूर्णिमा,सुदी 1526 [A .D .1469 ] ननकाना साहिब [ तलवंडी -राय भोई ] लाहौर से दक्षिण -पश्चिम लगभग चालीस किलोमीटर दूर [अब पाकिस्तान में ]परमात्मा की समर्थ ज्योति का उत्सर्ग | पिता ,कालू राम मेहता और माँ, त्रिपता की पवित्र कोख से जग तारणहार बाबे नानक का देहधारी स्वरुप आकार पाता है |
पूरी मानव जाति इस समय वैचारिक तमस के आगोश में ,भ्रम की अकल्पनीय स्थिति बिलबिलाती मानव प्रजाति ,कही कोई सहकार नहीं ,किसी का किसी से कोई सरोकार नहीं, धार्मिक आर्थिक सामाजिक सोच नितांत कुंठा में डूबी, अलोप होने के कगार पर, विस्वसनीयता का बिराट संकट ,दम तोड़ती मान्यताओं की सांसें ,जीवन से जीवन की उपेक्षा ,दैन्यता की पराकाष्ठा, दुर्दिन का चरम ,यही समय था जब परमात्मा ने देव - दूत को भारत- भूमि पर उद्धारकर्ता के रूप में आदि गुरु नानक देव जी को पठाया | इस पावन- पर्व पर परमात्मा के प्रति कृतज्ञता व आभार, साथ ही समस्त मानव जाति को सच्चे हृदय से बधाईयां व शुभकामनाये देता हूँ |
बाबे नानक का मूल- दर्शन --आडम्बरों से दूर होना
-मनुष्यता की एक जाति
-विनयशीलता व आग्रही होना
-पूर्वाग्रहहीनता |
-एकेश्वरबाद का स्वरुप ही स्वीकार्य
-जीवन के प्रर्ति उदारता, दया, क्षमा
-कर्म की प्रधानता एक अनिवार्य सूत्र
-ज्ञान और शक्ति का बराबर का संतुलन
- निष्ठां संकल्प और कार्यान्वयन
-जीवन की आशावादिता
आत्मा की मुक्ति का स्रोत परमात्मा की अनन्य भक्ति
-आचरण और आत्म शुचिता का सर्वोच्च प्राप्त करना
-ईश्वर में अगाध आस्था |
आदि गुरु नानक देव जी ने ईश्वर को पाने ,पहचानने का माध्यम गुरु को बताया ,
" भुलण अंदरों सभको,अभुल गुरु करतार "
और
" हरि गुरु दाता राम गुपाला "
बाबा नानक का कथन , समर्पण और विस्वसनीयता के प्रति सुस्पष्ट है -
"गुरु पसादि परम पद पाया ,नानक कहै विचारा "
बाबा नानक परमात्मा को इस रूप -
"एक ओंकार सतनाम करता पुरख निरभउ निरवैर अकाल मूरति अजुनी सैभंगुर परसादि "
में ढाल कर समस्त वाद -विवाद को ही जड़ से समाप्त करते हैं ,और यही शलोक सिखी का मूल मंत्र बन जाता है |
बिना किसी की आलोचना , संदर्भ या विकारों को उद्धृत किये बाबा नानक समूची मानवता को प्रेम का सन्देश देते हैं कहते हैं -
माधो , हम ऐसे तुम ऐसो तुम वैसा |
हम पापी तुम पाप खंडन निको ठाकुर देसां
हम मूरख तुम चतुर सियाने ,सरब कला का दाता ....माधो . |
पूरी मानव जाति इस समय वैचारिक तमस के आगोश में ,भ्रम की अकल्पनीय स्थिति बिलबिलाती मानव प्रजाति ,कही कोई सहकार नहीं ,किसी का किसी से कोई सरोकार नहीं, धार्मिक आर्थिक सामाजिक सोच नितांत कुंठा में डूबी, अलोप होने के कगार पर, विस्वसनीयता का बिराट संकट ,दम तोड़ती मान्यताओं की सांसें ,जीवन से जीवन की उपेक्षा ,दैन्यता की पराकाष्ठा, दुर्दिन का चरम ,यही समय था जब परमात्मा ने देव - दूत को भारत- भूमि पर उद्धारकर्ता के रूप में आदि गुरु नानक देव जी को पठाया | इस पावन- पर्व पर परमात्मा के प्रति कृतज्ञता व आभार, साथ ही समस्त मानव जाति को सच्चे हृदय से बधाईयां व शुभकामनाये देता हूँ |
बाबे नानक का मूल- दर्शन --आडम्बरों से दूर होना
-मनुष्यता की एक जाति
-विनयशीलता व आग्रही होना
-पूर्वाग्रहहीनता |
-एकेश्वरबाद का स्वरुप ही स्वीकार्य
-जीवन के प्रर्ति उदारता, दया, क्षमा
-कर्म की प्रधानता एक अनिवार्य सूत्र
-ज्ञान और शक्ति का बराबर का संतुलन
- निष्ठां संकल्प और कार्यान्वयन
-जीवन की आशावादिता
आत्मा की मुक्ति का स्रोत परमात्मा की अनन्य भक्ति
-आचरण और आत्म शुचिता का सर्वोच्च प्राप्त करना
-ईश्वर में अगाध आस्था |
आदि गुरु नानक देव जी ने ईश्वर को पाने ,पहचानने का माध्यम गुरु को बताया ,
" भुलण अंदरों सभको,अभुल गुरु करतार "
और
" हरि गुरु दाता राम गुपाला "
बाबा नानक का कथन , समर्पण और विस्वसनीयता के प्रति सुस्पष्ट है -
"गुरु पसादि परम पद पाया ,नानक कहै विचारा "
बाबा नानक परमात्मा को इस रूप -
"एक ओंकार सतनाम करता पुरख निरभउ निरवैर अकाल मूरति अजुनी सैभंगुर परसादि "
में ढाल कर समस्त वाद -विवाद को ही जड़ से समाप्त करते हैं ,और यही शलोक सिखी का मूल मंत्र बन जाता है |
बिना किसी की आलोचना , संदर्भ या विकारों को उद्धृत किये बाबा नानक समूची मानवता को प्रेम का सन्देश देते हैं कहते हैं -
माधो , हम ऐसे तुम ऐसो तुम वैसा |
हम पापी तुम पाप खंडन निको ठाकुर देसां
हम मूरख तुम चतुर सियाने ,सरब कला का दाता ....माधो . |

"साजनडा मेरा साजनड़ा निकट खलोया मेरा साजनड़ा " |
बसुधैव कुटुम्बकम कि वकालत करते हुए बाबा जी ने अन्वेषण ,अनुसन्धान को कभी रोका न नहीं ,मिथकों को तोड़ स्वयं भी देश से बाहर गए और उनके सिख विश्व के प्रत्येक भाग में उनकी प्रेरणा से यश व वैभव सम्पदा से सुसज्जित हैं . | ज्ञानार्जन को सिमित या कुंठित नहीं किया . |
समाजवाद का बीज बाबा नानक ही बोता है ,कर्म कि रोटी को दूध कि रोटी साबित करता है -
" किरत करो बंड के छको ". |
आदि गुरु मानव -मात्र कि सेवा मे स्वयं को निंमज्जित करते हैं , सर्व प्रथम मानव मात्र के लिए भला चाहते हैं ,बाद में अपना स्थान रखते है -
" नानक नाम चढ़दी कलां ,तेरे भाणे सर्बत दा भला "अंत में लख -लख बधाईयों के साथ -
मुंतजिर हैं तेरी निगाह के दाते ,
इस जन्म ही नहीं हजार जन्मों तक ।
उदय वीर सिंह
मंगलवार, 4 नवंबर 2014
रविवार, 2 नवंबर 2014
धन्यवाद ! श्री आर्यन शर्मा जी ,प्रतिनिधि संपादक (समाचार पत्र - ' पत्रिका ') व समाचार पत्र - ' पत्रिका ' का । आप द्वारा मेरे हिन्दी ब्लॉग ' उन्नयन ' को पत्रिका में स्थान देकर सम्मानित करने का । 1 नव 2014 के साप्ताहिक परिशिष्ट मेरे हिन्दी ब्लॉग की चर्चा की गयी है,पढ़ कर खुशी हुई । ये खबर भी मेरे आदरणीय वीर, सरदार बी यस पाबला जी द्वारा दी गयी ,उनका हृदय से धन्यवाद । मुझे आशा है आप सभी सुधी मित्रों , पाठकों को भी अच्छा लगा होगा । सादर स्नेहानुरागी ।
उदय वीर सिंह
उदय वीर सिंह
शुक्रवार, 31 अक्तूबर 2014
रहो किसी का होकर

जींद हँसती है, रहो किसी का होकर
खुशी मिलती है किसीको खुशी देकर
देख लेना कभी ,किसी का गम लेकर -
देख लेना कभी ,किसी का गम लेकर -
पैरहन क्या है , न देख निगाहें बदलो
बीज जमता है ,जमीं में दफन होकर -
माना मलमली दुपट्टों की, उड़ान ऊंची
जो निभाना तो,किसी का कफन होकर -
कांटे भी पनाह में हैं,गुल भी पनाह में
कितना सबाब है जीना गुलशन होकर-
कितना सबाब है जीना गुलशन होकर-
क्यों गर्दिशी का आलम अलविदा कहो
बनो चिराग तो उलफत से रौशन होकर -
बनो चिराग तो उलफत से रौशन होकर -
उदय वीर
रविवार, 26 अक्तूबर 2014
अब आईना तलाशता है

बीच आवारा बादलों के चाँद रस्ता तलाशता है-
हो रही दर्द की बारिस सुबह से वो खुले न खुले
न सूखे पर अभी परिंदा फिर भींगना चाहता है -
गैरतमंद होठों तक ,चल के जाम आया उदय
बना हलक के दो घूंट अब आईना तलाशता है-
कितना कमजोर है बदन जज्बा ए आशिकी का
हर दिल में जा अपना आशियाना तलाशता है -
बिकने के बाद बिछने के बाद स्वाभिमान जागा
अब बर्बाद जिंदगी का मायिना तलाशता है -
उदय वीर सिंह
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