शुक्रवार, 30 दिसंबर 2022

गुरु पर्व की लख लख बधाई..

 






🙏शाहे शहंशाह दशम पातशाह,साहिबे क़माल सरवंश दानी गुरु गोबिंद सिंह साहिब जी महाराज, के पावन प्रकाश पर्व की समस्त मानव जाति को लख- लख बधाई व शुभकामनाएं।

" जो तो प्रेम खेडन का चावो।

सिर धर तली गली मेरे आओ।

जेह  मारग  पैर  धरीजै ,

शीश दीजै कान्ह न कीजै।"

             - दशम पातशाह जी

देह सिवा वर मोहि इहै 

सुभ करमन ते कबहूं न टरौं 

न डरौं अरि सों जब जाइ लरौं 

निश्चय कर अपनी जीत करौं।

            (चंडी छस्तीत्तर से)

भारतीय  संवत्सर के अनुसार गुरु गोबिंद सिंह साहिब का लोक अवतरण प्राकट्य काल मिती पौष माह के शुक्ल पक्ष की सप्तमी, संवत 1723 में व ग्रेगेरियन कैलेंडर के अनुसार 22 डिसम्बर 1666  ई. को पटना ( बिहार राज्य ) में है।

उनका पारगमन काल मिती 17।10।1708  नांदेड़ (महाराष्ट्र) है।

जमिया वीर अगम्मणा वरियाम अकेला

वाहो! वाहो! गोबिंद सिंहआपे गुरु चेला।

पिता नवम पातशाह अमर वलिदानी श्री गुरु तेगबहादुर जी महाराज।

माता- अमर वलिदानी माता गुजर कौर जी

पुत्र-  

1-अमर वलिदानी साहिबजादा अजीत सिंह जी।

2 - अमर वलिदानी साहिबजादा जुझार सिंह जी।

3 -अमर वलिदानी साहिबजादा जोरावर सिंहजी

4- अमर वलिदानी साहिबजादा फतेह सिंह जी

पुत्री- 1- अमर वलिदानी  बीबी शरण कौर (हरि शरण कौर जी)

   निखिल विश्व के महानतम चिंतकों दार्शनिकों राजनेताओं कूटनीतिज्ञों राष्ट्राध्यक्षों सेनापतियों आचार्यों रणनीतिकों इतिहासकारों ने गुरु गोबिंद सिंह जी महाराज के विषय में अपने अनमोल विचार व्यक्त किये हैं। 

संदर्भ-The exillance of Guru Gobind Singh .- (सरूप सिंह अलघ)

संक्षिप्त में सार यही कि श्री गुरु महराज के त्याग वलिदान प्रेम सेवा पौरुष साहस शौर्य पराक्रम ...का इस दुनियां में कोई सानी नहीं।

   अल्ला याद खां जोगी जी के शब्दों में-

मैं तेरा हूं, बच्चे भी मेरे तेरे हैं मौला !

थे तेरे ही, हैं तेरे, रहेंगे तेरे दाता !

जिस हाल में रक्खे तू, वही हाल है अच्छा !

जुज़ शुक्र के आने का ज़बां पर नहीं शिकवा !

***

करतार की सौगन्द है, नानक की कसम है ।

जितनी भी हो गोबिन्द की तार्रीफ़ वुह कम है ।

पीर बुल्ले शाह के शब्दों में-

" न कहूँ अबकी ना कहूँ तबकी

न होते गुरु होबिन्द सिंह सुन्नत होती सबकी।" 


   जिनकी बदौलत आज भारत की संस्कृति, संस्कार,आचार, गौरव भारत ही नहीं पूरी दुनियां में उच्च मानदंडों को स्थापित किया है जिसका युग युग ऋणी रहेगा ।

  हमें गर्व है हम उनके वारिस उनके पथ के सेवादार हैं।

उदय वीर सिंह।

सोमवार, 26 दिसंबर 2022

माहे शहादत ( पौष)


 




🙏🙏🙏

माह-ए-शहादत (पौष ) 

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(20  दिसंबर 1705 से 27 दिसंबर 1705)

  साहिबे कमाल दशम पातशाह गुरु गोबिन्द सिंह जी महाराज के चार साहिबजादे बाबा अजित सिंह जी उम्र 18 वर्ष ,बाबा जुझार सिंह जी उम्र 14 वर्ष (चमकौर के युद्ध में ) बाबा जोरावर सिंह जी उम्र 9 वर्ष  बाबा फतेह सिंह जी उम्र 6 वर्ष सरहिंद में ,जालिम सल्तनत द्वारा जिंदा दीवार में चुनवा दिए  गए ,एक मात्र गुरु पुत्री बीबी शरण कौर जी (उम्र 15 वर्ष ) शहीद साहिबजादों व गुरूसिक्खों के  अंतिम संस्कार करते समय शहीद हुईं । माता गुजर कौर जी ने अपने  मासूम पोतों (साहिबजादा जोरावर सिंह जी ,फतेह सिंह जी ) के दीवार में चुने जाने के बाद अपने प्राण त्याग दिए। और हजारों गुरु- सिक्खों को कौम, देश ,संस्कृति व मूल्यों की रक्षा में शहादत प्राप्त हुई  इनके अप्रतिम अकल्पनीय अविस्वसनिय शौर्य, अमर वलिदान ने सनातनी दीपशिखा को सदा के लिए बुझने से बचा लिया। हमे गर्व है हम उनके वारिस हैं।

  लासानी अमर वलिदानियों कोअश्रुपूरित विनम्र श्रद्धांजलि व कोटि कोटि प्रणाम।

****

दुनियां बदलने वाले देखे हैं हालात 

कैसे कैसे।

पूछा जालिमों ने फरिश्तों से सवालात

कैसे कैसे।

सच और इंसाफ के रहबरी की 

बात थी,

उठाये हैं अपने बज़्म में मामलात 

कैसे कैसे।

इंसानियत जुल्म जालिमों के हाथ 

मर रही थी,

वहशियों के कारनामे कागजात

कैसे कैसे।

गुरु,गुरुवाणी गुरूसिक्खी कि 

दुनियां लासानी

जमाने को ये दिए हैं हीरे हयात

कैसे कैसे।

उदय वीर सिंह।

शुक्रवार, 23 दिसंबर 2022

पुस्तक विमोचन( बंजर होती संस्कृति)

 सुधि मित्रों मेरी नवीन कृति बानजीर होती संस्कृति का विमोचन 20।12।22 को  सम्पन्न हुआ । हृदय की गहराईयों से आप सभी गुरु शिक्षकों परिजनों संबंधियों मित्रों सुधि पाठकों व स्नेहियों का आदर व आभार। नीचे इंगित लिंक पर चित्र व विवरण संप्रेषित हैं।

उदय वीर सिंह




https://m.facebook.com/story.php?story_fbid=pfbid03qKfDLQC8DGbM4Esd15sgP4Kouy5YLs2nXpDy8KcohFurrAcPMqcq6Kn1bJLW19ql&id=100001745814776

गुरुवार, 15 दिसंबर 2022

बंजर होती संस्कृति ( कहानी संग्रह)



 



🙏 प्रिय सुधी मित्रों नमस्कार ! 

एक सुखद सूचना आपसे साझा कर रहा हूँ,मेरी नवीन कृति " बंजर होती संस्कृति" (कहानी संग्रह ) हंस प्रकाशन दिल्ली के द्वारा प्रकाशित के विमोचन का सौभाग्य दिनांक 20।12।22 मंगलवार स्थान ग्रेटर कैलाश- 2 दिल्ली में ख्यातिलब्ध शिक्षाविदों व मूर्धन्य हिंदी भाषा सेवियों के सानिध्य व कर कमलों द्वारा मुझे प्राप्त हो रहा है,हृदय से अपने मानयोग अतिथि, हिदी पुरोधाओं सेवियों व साधकों आयोजनकर्ताओं  का आभार व स्नेहिल कृतज्ञता ज्ञापित करता हूँ। 

 सर्वप्रिय डॉ हरीश नवल सर ( यह नाम ही काफी है हिंदी साहित्य की आकाशगंगा में) का ऋणी हूँ जिन्होंने इस पुस्तक को अपने अनमोल शब्द भाव रूपी आशीष दे हमें मान दिया।

  आप सभी गुणीजनों का स्नेह व आशीष पूर्व की तरह मुझे मिलता रहेगा यह मेरा विस्वास है।

बंध-सूत्र.....

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पुस्तक :  "बंजर होती संस्कृति"

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यह कृति किसी एक विधा तक सीमित नहीं है, यह एक विशेष तथ्य है। कहानी, संस्मरण, लघुकथा, टिप्पणी, समीक्षा आदि का एक सम्मिलित समूह है।

ऐसे प्रयोग साहित्य की बेहतरी के सोपान माने जाते हैं। यह पुस्तक सोदेश्यता का प्रतीक बन सकी है। सम्मिलित रचनाएं रंजन हेतु नहीं हैं अपितु कोई ना कोई लक्ष्य या उद्देश्य लेकर चली हैं। अंतःधारा संस्कृति की बिगाड़ की चिंता लिए हुए है, जिसे प्रत्यक्ष न कहकर लेखक ने अपने शब्दों में परोक्ष कहा है।

- इसी पुस्तक से

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रचनाकार : उदयवीर सिंह  (  साहित्यकार)

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विशिष्ट अतिथि: त्रिलोक दीप ( वरिष्ठ पत्रकार)

मुख्य अतिथि: आशीष कंधवे ( साहित्यकार)

सानिध्य: इंद्रजीत शर्मा ( साहित्यकार)

अध्यक्षता: हरीश अरोड़ा ( शिक्षाविद)

विशिष्ट वक्ता:

विभा ठाकुर (समीक्षक) 

रुद्रेश नारायण मिश्र ( शिक्षाविद)

सूत्रधार: कीर्ति बैद ( साहित्य अध्येता) 


20.12.2022,  3 PM

कुंजुम

एम 60, प्रथम तल, एम ब्लॉक मार्केट, ग्रेटर कैलाश - 2 

नई दिल्ली - 110048

नज़दीकी मेट्रो:  ग्रेटर कैलाश

#कस्तूरी

उदय वीर सिंह।

रविवार, 11 दिसंबर 2022

जो दिल में है....


 





.............✍️


जो  दिल  में  है सबके मयस्सर  हो जाये।

वास्ते सदाकत दुआओं में असर  हो जाये।

अंतहीन न हो रास्ता किसी भी मंजिल का

गम किसी का भी हो वीर मुख़्तसर हो जाये।

काबा किसी के दिल काशी किसी के दिल 

दिल  में  किसी  के बाबे अमृतसर हो जाये।

नफ़रत की छैनियों  ने  तोड़े  हैं तमाम रस्ते

मोहब्बत  हर किसी की हमसफ़र हो जाये।

उदय वीर सिंह।

मसर्रत का पता पूछते रह गए...


 





.....✍️


मसर्रत का पता हम पूछते रह गए।

इतना घना जंगल रास्ता ढूंढते रह गए।

काफ़िले निकल गए उड़ाते हुए गुब्बार,

किसको पड़ी पीछे रास्ते टूटते रह गए।

पूंजी किसी की सामान किसी और का,

बाजार को समझदार  लूटते रह गए।

आग और घर किसी के लगाई किसी ने,

बस्ती के लोग आपस में जूझते रह गए।

उदय वीर सिंह।

बुधवार, 7 दिसंबर 2022

आप जैसी हैं...






 ...........✍️

सुनाऊंगा वही दिल में सदायें आप जैसी हैं।

किया वापस वही हमने वफ़ाएँ आप जैसी हैं।

क्या हासिल हुआ उनको हमें मालूम नहीं भाई,

उनकी  शान  में  मांगी दुआएं  आप जैसी हैं।

जो हमको मिला उनको दिया वो फर्ज था मेरा,

बिना तरमीम के सौंपा फ़िजाएँ आप जैसी हैं।

बहुत तकसीम से हमने चुना हैआपका तोहफा,

पोशीदा है नहीं कुछ भी सजाएं आप जैसी हैं।

उदय वीर सिंह।

6।12।22

बुधवार, 30 नवंबर 2022

औजारों की बात करें...






 🙏नमस्कार मित्रों !

बहुत जला है जग जीवन
क्यों हथियारों की बात करें।
आज जरूरत खुशहाली की
आओ औजारों की बात करें।
हर  अधर  चाहता प्रेम गीत
हर  आंगन  मधुवन हो जाये,
बहने  दो  पवन  बहारों  के,
क्यों  दीवारों  की  बात  करें।
उदय वीर सिंह।

रविवार, 27 नवंबर 2022

जीवन का सर्ग बताओ जी







......जीवन का सर्ग ✍️

छोड़ कल्पना  कल्प कलिल

यथार्थ  धरा  तल आओ जी।

त्याग  विरुदावली   दरबारी

कुछ लोक  रसायन गाओ जी।

पांव  पीर  तल  फटी  विबाई

जतन  बहुत  पर  भर  न पाई,

हर्ष अलंकार रस भरी किताबें

निज कंठ सरस कुछ गाओजी।

भरा  प्रेम  से  हर  पन्ना - पन्ना

गति पवन घृणा की थम न पाई

रंगमहलों  के तज ललित व्यास 

कुछअबलों की व्यथा सुनाओ जी।

रस  भरे  अधर  तन  कंचन की

धन  कुबेर  मद  अतिरंजन  की

यश गाथा से भरे अम्बर अवनी

मजलूमों की कुछ खैर मनाओ जी।

राग रंग रति दिव्यों के मंडन

का अतिरंजन तज,

यह रीतिकाल का कल्प नहीं

जीवन का सर्ग बताओ जी।

उदय वीर सिंह।

संविधान दिवस की बधाई


 




........✍️

शायद!

बहुत 

गहरे तक दरक 

गयी है,

दीवार ही नहीं 

छत भी,

गिर सकती है कभी भी..

जिसके नीचे 

सहज सरल समभाव में थे- 

अमन विकास सुरक्षा शिक्षा   

स्वास्थ्य न्याय संस्कृति अवसर सहकार अभिव्यक्ति...।

उसके नीचे निर्मित

 हो रहे हैं 

विशाल दलदल,

पार्श्व में  मरुस्थल।

आदिमता रूढ़ियाँ आस्था मान्यता मिथकों असमानता अन्याय के तमाम...।

शायद वे विकल्प होंगे

समता ममता दया 

करुणा,न्याय

प्रेम शांति सद्द्भाव अवसर

उन्नति

मानवीयता के...।

उदय वीर सिंह।

शुक्रवार, 25 नवंबर 2022

आंसू की विदाई क्यों लिखता


 



.


.......✍️


लिखने  को  सूरज  चांद  प्रखर,

दीपक की बधाई क्यों लिखता।

जब आंखें हैं तो आएंगे ही

आँसू की विदाई क्यों लिखता।

काफी  हैं  झूठ  फ़रेब  कलुष

मेहनत की कमाई क्यों लिखता।

होता निर्वाह पसीना बहके भी

बेशक  महंगाई  क्यों  लिखता।

भीड़  अगर  खामोश  न  होती,

सफ़र -ए-तनहाई क्यों लिखता।

देखा  सबने  पर  देख  न  पाए

बाजीगर की सफाई क्यों लिखता।

उदय वीर सिंह।

रविवार, 20 नवंबर 2022

साहस रखिये.....





  ....
✍️

कहने  का  संकल्प सबल

सुनने  का  साहस रखिये।

आघात  पीर  का दाता है,

देकर पाने  का बल रखिये।

लौट आती प्रतिध्वनि बनकर

अपनी  ध्वनि  जैसी  भेजी,

अपने शब्दों केही स्वागत में

खाली अपना आँचल रखिये।

कांटों  से  गंध  नहीं मिलती

चाहे वन  में हों  या रंगमहल

कभी कीच गेह अनुमन्य नहीं 

चाहे नाम भले संदल रखिये।

उदय वीर सिंह।

शुक्रवार, 18 नवंबर 2022

ऊंचा आकाश रखिये...


 





🙏🏼नमस्कार मित्रों !


सार्थकता और सृजन  की सदा प्यास रखिये।

धूप व छांव स्थायी नहीं ऊंचा आकाश रखिये।

पाखंड और चमत्कारों की सनसनी से कहीं दूर,

अपने मन-मानस और बाहुओं पर आस रखिये।

बादल कुछ घने हैं इस पार अवसादों के माना,

उस  पार  रोशनी  है मन को मत उदास रखिये।

ये दीये बुझ जाते हैं चली तेज रफ्तार हवाओं से,

कभी न बुझता ज्ञानदीप दिल में उजास रखिये।

उदय वीर सिंह।

रविवार, 13 नवंबर 2022

सतनाम भी रहा है...


 




........✍️

रही सल्तनत फ़रेब तो ईमान भी रहा है।

हैवानियत की सरजमीं इंसान भी रहा है।

कम  नहीं हुआ रोज तारों का टूट गिरना,

कहकशां का एक पूराआसमान भी रहा है।

मिटाने  के  हसरती  तूफान भी चलते रहे,

बर्बादियों के बीच रोशन मकान भी रहा है।

मुंतजिर  यूं  ही नहीं पत्थरों  के बीच कोई

कहीं दान के प्रकाश में प्रतिदान भी रहा है।

आलोचना के कर-कमल कीच में खिलते रहे

अपमान के उर्वर धरातल  मान भी रहा है।

हिन्दू - मुसलमान की दीवारें बहुत ऊंची हईं,

इंसानियत  की  शान  में सतनाम भी रहा है।

उदय वीर सिंह।

शनिवार, 12 नवंबर 2022

दिन उधारों के आ गए..


 




..........

✍️

जो ख़्वाब में नहीं थे इश्तिहारों से आ गए 

हमदर्दी के जले ज़ख्म बाजारों से आ गए।

मेरी कमनसीबी को कल सुना रहे थे अपने

आज देखा सुर्खियों में अखबारों से आ गए।

ख़ारों ने जमा रखी हैं  जड़ें  बसंत  के गांव 

पतझड़ के अफसाने  बहारों  से आ  गए ।

कितना  सूनापन  है मेलों में , सबब क्या है

सरगोशियां  हैं कि दिन  उधारों  के आ गए।

अर्थ का गुमनाम हो जाना विस्मित नहीं करता

तालियों के कीर्तिमान शब्दालंकारों से आ गए।

उदय वीर सिंह।

मंगलवार, 8 नवंबर 2022

आदि गुरु गुरुनानक देव जी महाराज


 .




...🙏🏼553वें प्रकाशपर्व की पूर्व संध्या पर समस्त देश-विदेश वासियों को प्रकाशपर्व की लख लख बधाई व शुभकामनाएं...✍️

नानक नाम अधारा...

आदिगुरु गुरु नानक देव जी (THE PATH )

  " सतगुरु नानक परगटिया

मिटी धुंध जग चानड़ होया "

    मिती कार्तिक पूर्णिमा,सुदी 1526  [A .D .1469 ] ननकाना साहिब [ तलवंडी -राय भोई ] लाहौर से दक्षिण -पश्चिम लगभग चालीस किलोमीटर दूर [अब पाकिस्तान में ] परमात्मा की समर्थ ज्योति का उत्सर्ग |  पिता ,कालू राम मेहता और माँ, त्रिपता की पवित्र कोख  से जग तारणहार बाबे नानक का देहधारी स्वरुप आकार पाता है।

        पूरी मानव जाति इस समय  वैचारिक तमस के आगोश में ,भ्रम की  अकल्पनीय स्थिति  बिलबिलाती मानव प्रजाति ,कही कोई सहकार नहीं ,किसी का किसी से कोई सरोकार नहीं, धार्मिक आर्थिक सामाजिक सोच  नितांत  कुंठा में डूबी, अलोप होने के कगार पर, विस्वसनीयता का बिराट संकट ,दम तोड़ती मान्यताओं की सांसें ,जीवन से जीवन की उपेक्षा ,दैन्यता की पराकाष्ठा, दुर्दिन का चरम  ,यही समय था जब परमात्मा ने देव - दूत को भारत- भूमि पर उद्धारकर्ता के रूप में आदि गुरु नानक  देव जी को पठाया  | इस पावन- पर्व पर परमात्मा  के प्रति कृतज्ञता व आभार, साथ ही  समस्त मानव जाति को  सच्चे हृदय से बधाईयां व शुभकामनाये देता हूँ ।

    बाबे  नानक का मूल- दर्शन -

-आडम्बरों से दूर होना 

-मनुष्यता की एक जाति

-विनयशीलता व आग्रही होना

-पूर्वाग्रहहीनता ।

-एकेश्वरबाद का स्वरुप ही स्वीकार्य

-जीवन के प्रर्ति उदारता, दया, क्षमा

-कर्म की प्रधानता एक अनिवार्य सूत्र 

-ज्ञान और शक्ति का बराबर का संतुलन

- निष्ठां संकल्प और कार्यान्वयन

-जीवन की आशावादिता 

आत्मा की मुक्ति  का स्रोत परमात्मा की अनन्य भक्ति

-आचरण और आत्म शुचिता  का सर्वोच्च प्राप्त करना

-ईश्वर में अगाध  आस्था । 

   आदि गुरु नानक देव जी ने ईश्वर को पाने ,पहचानने का माध्यम गुरु को बताया ,

    " भुलण अंदरों सभको,अभुल गुरु करतार " 

और

      " हरि गुरु दाता राम गुपाला "

     बाबा नानक का कथन , समर्पण और विस्वसनीयता के प्रति सुस्पष्ट  है -

                    "गुरु पसादि परम पद पाया ,नानक कहै विचारा "

बाबा नानक परमात्मा को इस रूप -

      "एक ओंकार सतनाम करता पुरख निरभउ  निरवैर अकाल मूरति अजुनी सैभंगुर परसादि " 

  में  ढाल कर  समस्त वाद -विवाद को ही जड़ से समाप्त करते हैं ,और यही शलोक सिखी का मूल मंत्र बन  जाता है  ।

   बिना किसी की आलोचना , संदर्भ या विकारों को उद्धृत किये  बाबा नानक  समूची मानवता को प्रेम का सन्देश देते हैं कहते हैं -

    माधो , हम ऐसे तुम ऐसो तुम वैसा ।

     हम पापी तुम पाप खंडन निको ठाकुर देसां

    हम  मूरख तुम चतुर सियाने ,सरब कला का दाता            ....माधो ...


     जीवन की मधुरता ,सात्विकता और रचनाशीलता में है । , बाबा कैद में भी और अपनी उदासियों [यात्राओं]में भी ,निर्विकार भाव से अहर्निश  प्रेम व सत्य को जीता है ....उसे परमात्मा की  ओट पर पूरा विस्वास है ,-

                "साजनडा  मेरा साजनड़ा  निकट खलोया  मेरा  साजनड़ा "  ।

  बसुधैव कुटुम्बकम कि वकालत करते हुए बाबा  जी ने अन्वेषण ,अनुसन्धान को कभी रोका न नहीं ,मिथकों को तोड़ स्वयं भी देश से बाहर गए और उनके सिख विश्व के प्रत्येक भाग में उनकी  प्रेरणा से यश व वैभव सम्पदा से सुसज्जित हैं .। ज्ञानार्जन  को सिमित या कुंठित नहीं किया . ।

  समाजवाद का बीज बाबा नानक ही बोता  है ,कर्म कि रोटी को दूध कि रोटी साबित  करता  है -

" किरत करो बंड  के छको ". 

    आदि गुरु मानव -मात्र  कि सेवा मे स्वयं को  निंमज्जित करते हैं ,  सर्व प्रथम मानव मात्र के लिए भला चाहते हैं ,बाद में अपना स्थान रखते है ।

    " नानक नाम चढ़दी कलां ,तेरे भाणे  सर्बत दा  भला "

अंत में लख -लख  बधाईयों के साथ -

          मुंतजिर हैं तेरी निगाह के दाते ,

          इस जन्म ही नहीं हजार  जन्मों तक।

   उदय वीर सिंह।

रविवार, 6 नवंबर 2022

दिखाने को रह गया है...


 





ये टूटा हुआ घरौंदा बनाने को रह गया है।

ये उजड़ा हुआ चमन बसाने को रह गया है।

तूफ़ानी लश्करों से हवाओं ने जोड़ा रिश्ता

ले जायें कहीं उड़ाकर छिपाने को रह गया है।

तक्षशिला  नालंदा  की  बुलंदी  कभी  रही,

अदीबों की महफ़िलों में सुनाने को रह गया है।

भटकने  लगे  हैं  लोग  अंधेरों की जद शहर,

चौराहे का रोशनीघर दिखाने को रह गया है।

बरसने लगी है  कालिमा अंबर  से  इस कदर,

किसी साये मेंअपना दामन बचानेको रह गया है

यह जानकर भी अपना हर  कोई  सगा नहीं,

रिश्तों के इस सफ़र में निभाने को रह गया है।

उदय वीर सिंह।

बुधवार, 2 नवंबर 2022

गीत रचते रहेंगे....


 





.........✍️


पढ़ो  न  पढ़ो  गीत रचते  रहेंगे।

पग गंतव्य की ओर चलते रहेंगे।

आएगा मधुमास पतझड़ के पीछे

रंग लेकर कई पुष्प खिलते रहेंगे।

बुझा  दे  पवन वेग आले के दीये

हृदय  में  जले दीप  ,जलते रहेंगे।

तपेगी अगन में जहां भी ये धरती

नेह ले नीर  बादल  बरसते  रहेंगे।

दीवारों  के  निर्माण  होते  रहे  हैं,

मगर द्वार उनमें  भी  खुलते रहेंगे।

कटीली हवावों ने फाड़े वसन को

पैरहन  अपने  पैबंद सिलते रहेंगे।

उदय वीर सिंह।

रविवार, 30 अक्तूबर 2022

फरीद कहाँ पाओगे....






 .......✍️

नफ़रत से  मोहब्बत कहाँ खरीद पाओगे।

सिर्फ रक़ीब ही मिलेंगे मुरीद कहाँ पाओगे

आंखों से जहालत का चश्मा जो नहीं उतरा

गरीबों के अंजुमन में गरीब कहाँ पाओगे ।

न पा सका मीरा सूर तुलसी कबीर की छांव,

अनुरागी कबीर व बाबा फरीद कहाँ पाओगे।

बुतों  से हमदर्दी  है  कि वो कुछ कहते नहीं,

डूबते  दिलों  के बीच उम्मीद कहाँ पाओगे।

उदय वीर सिंह।

सोमवार, 24 अक्तूबर 2022

बंदी छोड़ दिवस

 ..... बधाई  व शुभकामनाएं✍️

बंदीछोड़ दिवस (अक्टू 1621 ई.)

   सिक्ख धर्म के छठवें पातशाह गुरु हरिगोबिन्द साहिब जी महाराज के रूहानी व दुनियावी बुलंद रुतबे के आलोक को स्वीकार करते हुए मुग़ल सल्तनत के तत्कालीन बादशाह जहांगीर ( शासन काल 1605 से- 1627 ) ने गवालियर (मध्य प्रदेश) के किले में 52 हिन्दू राजा बंदियों व छठवें गुरु महाराज भी  दो वर्ष से कैद थे। 

बादशाह की  शारिरीक व शासकीय हालत लगातार  खराब होती जा रही थी ।तमाम कोशिशों के बाद भी मुश्किलें खत्म होने का नाम नहीं ले रही थीं। बादशाह को  ख्वाबों में बार बार गुरु साहिब को रिहा करने का इल्हामी हुक्म मिल रहा था ,जिससे वो बहुत परेशान था,समस्या से निजात के लिए अपनी मरकजी हुकूमती कैबिनेट व फकीरों की सलाह पर गुरु महाराज को उसने रिहा करने का फैसला में कर लिया । 

   किंतु गुरु साहिब अकेले रिहा होने को तैयार नहीं हुए। उन्होंने बादशाह को अवगत कराया  कि वे बगैर 52 बंदी राजाओं के कैद से रिहा नहीं होंगे। 

  सल्तनत की नजर में इन 52 भूपों को छोड़ना आत्मघाती कदम था। परंतु वे गुरु साहिब के फैसले के आगे विवश थे ,सशर्त  सबकी रिहाई का फरमान ई.सन 1621 में जारी हुआ।

  जिन राजाओं से सल्तनत के अस्तित्व को गंभीर खतरा था इस आशय के साथ रिहाई का आदेश जारी किया गया कि जितने राजा गुरु हरिगोबिन्द साहिब को पकड़ कर साथ जा सकते हों, कैद से मुक्त होकर जा सकते हैं।

  इसी शर्त के अनुपालन में गुरु महाराज  ने 52 कलियों (पताकों )का एक अंगरखा बनवाया जिसे पकड़ समस्त 52 कैदी हिंदू भूप किले से बाहर निकल कैद से मुक्त हुए।

  गुरु साहिब इसी दिन अमृतसर साहिब (पंजाब) पहुंचे यह शुभ दिन ज्योति पर्व  दीपावली का था। सिक्ख व हिन्दू जनमानस द्वारा दीप प्रज्वलित कर हृदय से  स्वागत व वन्दन किया गया।

  इसी दिन से इस दिवस को " दाता बंदी छोड़ दिवस" के रूप में देश दुनियां में खुशी के साथ मनाया जाने लगा ।यह सिक्ख व दिन्दू जन-मानस के लिए अमूल्य व मान का दिन था।

जिस ग्वालियर के किले में गुरु साहिब व राजा कैद थे उस किले की जगह 1968 में  संत अमर सिंह जी द्वारा एक भव्य गुरुद्वारा बनवाया गया। जिसे ' दाता बंदी छोड़ गुरुद्वारा ' के नाम से आज जाना जाता है।

उदय वीर सिंह।


🔥चिराग जलते रहें...


 



🔥ज्योतिपर्व की अनंत शुभकामनाएं मित्रों 🙏



दुआ करो चिराग जलते  रहें...।

आंधियों को लगाम दो,चिराग जलते रहें।

हर  राह  रौशनी हो  काफ़िले  चलते रहें।

अंधेरी सल्तनत को चिराग कुफ्र लगते हैं,

सलामत रहें वो हाथ कि चिराग बनते रहें।

अंधेरों  के  लश्कर  निगल लेंगेआदमियत

दुआ  करो  हर दहलीज चिराग़ सजते रहें।

सूरज ढल जाता है चिरागों की वफ़ा देकर,

कहीं मुख़्तसर न हो जाएं जज्बात जगते रहें।

उदय वीर सिंह।

रविवार, 23 अक्तूबर 2022

दीप जले... तम गया गया

 दीप जले त..म गया गया...

हर घरों को मिले रोशनी कम न हो।
हो हृदय में उजाला नयन नम न हो।
पूछते  हैं  नहीं  दीप  तुम  कौन  हो,
हर चौखट पर जलते नमन कम न हो।
ऊंचे  प्रतिमान  पग प्रेम  की  वल्लरी,
प्रकाशित हो कण-कण कहीं तम न हो।
आस  सबकी  पूरे ,गर्व  गरिमा  मिले,
लोक -विध्वंस जाए सृंजन कम न हो।
भव्य आलोक  की काव्य-धारा प्रखर,
रस -रजे भाव से जी जतन कम न हो।
उदय वीर सिंह।

मंगलवार, 13 सितंबर 2022

फुलकारियाँ निलेंगी...






 ...........✍️

विस्वास रखो  विरमित  हुए  हाथों से,

चित्रकारियां निकलेंगी।

मौन हैं स्तब्ध नहीं इन होठों से प्रलेखों

की आरियां निकलेंगी।

अग्निपथ का शमन होनाअवश्यम्भावी है 

शांति की सवारियां निकलेंगी।

पी लेते हैं गरल समभाव की गर्वित

संभावनाओं पर,

उन्माद आघात पर प्रतिघात की 

चिंगारियां निकलेंगी।

जलकर भी उर्वरता नहीं खोई अपनी

ममतामयी जमीन,

आज वीरान राख भरी कल मर्मस्पर्शी

फुलकारियाँ निकलेंगी।

न पढ़ सका कोई सौदाई चमन की संवेदना अन्तर्वेदना,

दमन  के बाद भी गुलों की क्यारियां

निकलेंगी।

उदय वीर सिंह।

गुरुवार, 8 सितंबर 2022

इल्ज़ाम मिलता रहेगा....


 





........✍️


जब तक झूठ को मुकाम मिलता रहेगा।

सच को हमेशा इम्तिहान मिलता रहेगा।

दरबारी कलम लिखेगी जब भी लिखेगी,

हिंद को मानसिक गुलाम मिलता रहेगा।

रोज मरने की आदत पुरस्कृत होती रही,

बाद बेगुनाही के इल्ज़ाम मिलता रहेगा।

सेवा त्याग कुर्बानी की तासीर कायम रही

इंसानियत  को  सतनाम मिलता रहेगा।

उदय वीर सिंह।

मंगलवार, 6 सितंबर 2022

शिक्षक गुरु....





 शिक्षक दिवस को समर्पित...🙏🏻

उज्वल पथ गंतव्य सुघर गुरु  

सास्वत  नेह तुम्हारा है।

वीथी समस्त मधुमय सबल 

कली किसलय  पात संवारा है

अंबर अनंत दृग बहु विशाल 

सूक्ष्म  तत्व  के  विश्लेषक,

स्पंदन संवेदन मर्म अनुभूति

गुरु आश्रय प्रेम की धारा है।

प्रज्ञा यश पौरुष कर्तव्य-प्रणेता

न्याय नीति का अनुशंसक

क्षमा दया करुणा में शीतल 

कामी वंचक को अंगारा है।

अंधड़ झंझावात काल दुर्दिन

की धार निराशा में,

प्रलय की निर्मम नदिया में

गुरु  पावन सरस किनारा है।

उदय वीर सिंह।

59।22

सोमवार, 5 सितंबर 2022

धर्म जाति के तालों में....





 ..........✍️

सागर  डूब  रहा जा रंगमहल के प्यालों में।

नदिया डूब रही है  कीचड़ -छिछले नालों में।

एक धरती का टुकड़ा कितना पिछड़ा जाता,

वतन हमारा डूब रहा धर्म-जाति के तालों में।

इश्तिहार  उत्थान  के  टूटे बिखरे बिलट गए,

भूख यतिमी मजबूरी आयी सबकी थालों में।

पाखंडों की हवेली से उच्च हिमालय बौना है,

मनुज जला जाता उन्माद भेद की ज्वालों में।

उदय वीर सिंह।

मंगलवार, 30 अगस्त 2022

कंचन, कंचन रहता है






 ......✍️

अर्श रहे या फर्श रहे
कंचन, कंचन रहता है।
अवसरवाद के आंगन में
परिवर्तन रहता है।
जितना टूटा जितना बिखरा
उतने अक्स दिखाता,
न बदला अपनी सीरत
दर्पन, दर्पन रहता है।
बंद मिला करती है चौखट
देखा परवाजों के ख्वाब,
स्वार्थ सिद्धि के द्वारों तक
अभिनंदन रहता है।
मर्यादा यश अभिमान वरण
कर कटार ले लेता।
आभूषण की छांव बैठ
कंगन,कंगन रहता है।
उदय वीर सिंह।
29।08।22

शनिवार, 27 अगस्त 2022

तपता सूरज ढल जाता है...






 ........✍️

तिनके तिनके जल उठते हैं

सारा जंगल जल जाता है।

नंगे पदचांपों की आहट से 

प्रस्तर श्रृंग भी हिल जाता है।

न मिटा सका है ताप अखंड

जन जीवनअविरल जाग्रत है,

एक बिरवे की छांव ही काफी

तपता सूरज भी ढल जाता है।

यदि धन-धार हृदय में संचित है

सम्मान सहित मर जाने की,

क्रूर नियति के गल,गाल बसे

अवरोध द्वार भी खुल जाता है।

उदय वीर सिंह।

बुधवार, 24 अगस्त 2022

रब छोड़ जाऊंगा...





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मैं अपनी गीतों का सबब छोड़ जाऊँगा।

जिये मेरा भारत तो मैं रब छोड़ जाऊंगा।

अजमत वतन की मेरे दिल में सिर्फ इतनी है,

अपने वतन को छोड़ सब छोड़ जाऊँगा।

चाहूंगा रखना  मैँ  प्रीत  की  दीवारों को

साँझी विरासत का मैँ दर छोड़ जाऊँगा।

देखी दिखाई अपनी गलियां रकीबों की,

अमन की हिफाजत में अदब छोड़ जाऊंगा।

दर्द  के दयारों  में सवालों की दुनियां है,

जवाबों के जानिब अपनी हद छोड़ जाऊंगा।

उदय वीर सिंह।

सोमवार, 22 अगस्त 2022

अमरबेल सी तेरी छांव...






 ........✍️


बरबस आते स्मृतियों में स्नेह सुरभि के

सुंदर गांव।

तपती किरणों से कवच हमारी अमरबेल

सी तेरी छांव।

ले लेती परछाईंअज्ञातवास जब निशा 

कर्कशा  आती,

पाया हमने कालरात्रि में आगे चलते

तेरे संवेदन के पांव।

समृद्ध  अधर  मुस्कान  सरस रच जाते 

राह विषम वन में,

बतलाता  कौन  पथिक को पथ, सबके 

अपने अपने दांव।

उदय वीर सिंह।

शनिवार, 13 अगस्त 2022

सहारा मिलता.......




 .. .....✍️

काश! सच को जरा सहारा मिलता।

मुल्जिम को जीवन दुबारा मिलता।

न बेचते हम अपना जमीरो ईमान,

तुमको तुम्हारा हमको हमारा मिलता।

न देते हम नफरत के पैगामों को हवा,

तूफान में किश्ति को किनारा मिलता।

झूठ के पांवों को गर पंख नहीं मिलते,

जमाने को पसंदीदा शोख शरारा मिलता।

इंसान को इंसानियत की आंखें मिलतीं,

न होती ऊंच नींच की खाई न बंटवारा होता।

उदय वीर सिंह।

मंगलवार, 9 अगस्त 2022

खरांस चली गई....

जब से छोड़ा उनके गीत गले की

खरी खरांस चली गयी।

जब से छोड़ा उनकी लीक 

जीवन की लगी फांस चली गयी।

बन समिधा दे आहुति कुंडों में 

अनुवंधों की, 

भय संशय दुविधा की छाई रात

अमावस ख़ास चली गयी।

कब तक धोते आंसू से मुख, 

कब तक प्यास बुझाते,

तोड़े पत्थर के झुरमुट पा मीठे 

सोते सरित तालाश चली गयी।

पाखंडों के जेवर से जीवन

कितना भारी था,

मैने छोड़ा दरबारी गर्दभ राग,

वो गीत उदास चली गयी।

उदय वीर सिंह ।

9।8।22

बुधवार, 3 अगस्त 2022

अमृत पीकर क्या करेंगे...


 





..........✍️


अर्थ मर जायेंगे तो शब्द जीकर क्या करेंगे।

न रहेगी दुनियां तो अमृत पीकर क्या करेंगे।

जब बारिश  तेजाबी , हवा में मिर्च घुली हो,

दर्द  के  शहर  में जख्म सीकर  क्या करेंगे।

ईश्वर होजाने का यकीन हो जाये आदमी को

उसे आदमियत की नजीर देकर क्या करेंगे।

उदय वीर सिंह।

रविवार, 31 जुलाई 2022

तूफान से मिलकर देखिए...


 





🙏...


कितना सच  सा  लगने लगता है झूठ,
कभी  बे- ईमान  से  मिलकर  देखिए।
किसी दरबारी के सामने बौना लगता है,
कभी किसी  तूफान से मिलकर देखिए।
ईश्वर को ढूंढना न पड़ेगा कभी दर-बदर,
किसी पाखंडी से जुबान लड़ाकर देखिए।
भूख  गरीबी  दहशत  फ़रेब गुमशुदा हुए,
दूरबीन लिए सितारों से मिलकर देखिए।
कितनी रंगत है बुतों की ऊंची फसीलों की,
बदरंग हो गया है इंसान से मिलकर देखिये।
इफरात पानी है लहराता हुआ मरुस्थल में
कभी किसी मृग-छौने से मिलकर देखिए।
उदय वीर सिंह।

शनिवार, 30 जुलाई 2022

मेजबान तो बहुत थे..


 





.......✍️


भूखा-प्यासा ही रह गया इंतजाम तो बहुत थे।

मिलीन पनाह धूप-बारिश में मकान तो बहुत थे।

रिहा हुआ आखिर बेगुनाह अपनी मौत के बाद,

जींद बीती शलाखों के पीछे विद्वान तो बहुत थे।

रोता रहा इंसान रोटी कपड़ा मकान के जानिब

मंदिरों में हिन्दू मसीतों में मुसलमान तो बहुत थे

गुलामी,भूख का इतिहास अतिश्योक्ति तो नहीं

चौकमें गबरू जवान खेतोंमें किसान तो बहुतथे।

गुमनामियों की ही चादर  में मायूस लौट आया
अजीजों की महफ़िल  में  मेजबान तो बहुत थे

उदय वीर सिंह।

मंगलवार, 26 जुलाई 2022

पीर लोरी सुनाने नहीं आयी,..








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शमशीर  नींद  से  जगाने  नहीं आयी।

तीर कभी कमान से लुभाने नहीं आयी।

आयी तो बे-मुरौअत अकेने नहीं आयी,

पीर  किसी को लोरी सुनाने नहीं आई।

मन को रौंदती रही गुरबति की जूतियां,

जंजीर तन को  मुक्त कराने नहीं आयी।

दूरियां  मज़बूरियाँ, दहशत  कायम रहे,

प्राचीर  दर  बराबरी निभाने नहीं आयी।

उदय वीर सिंह ।

सोमवार, 25 जुलाई 2022

पत्तों की मुखबिरी


 




.......,✍️


पत्तों की  मुखबिरी  से माली भी डर रहा है।

दरबारियों की फ़ितरत सवाली भी डर रहा है।
जमाने से दर -बदर वो  इंसाफ  मांगता है,
पाए तो पाए कैसे हाथ खाली जो डर रहा है।
इन हवाओं का क्या भरोषा बहने लगें किधर,
उनके  तेजाबीपन  से मवाली भी डर रहा है।
कीचड़ भरी हैं सड़कें रकीबों से  भरे दयार
बेहूरमतों की दहशत जलाली भी डर रहा है।
उदय वीर सिंह

शुक्रवार, 22 जुलाई 2022

मुगालते में था...







🙏......


तेरी ख़ामोशियों के पीछे कौन है मुगालते में था।

इल्मो हुनर शराफत,वफ़ादारी मुगालते में था।

शीशे की दीवारों का बे-तरह टूट बिखरा मंजर,

भीड़,पत्थरों की कवायद होगी मुगालते में था।

रिश्तों  का  टूट  जाना  उनका बेसुरा हो जाना,

तलाक की वज़ह तवायफ़ होगी मुगालते में था।

उदय वीर सिंह।

रविवार, 10 जुलाई 2022

कहूँ तो कैसे..





 ....कहूँ तो कैसे..✍️

है साजिशों  की  सान  सम्मान  कहूँ

तो कैसे।

जब  पीना  विष  का  जाम आसान 

कहूं तो कैसे।

दर्द गरीबी ऋण रोग आभूषण सतर 

बनाते बखरी,

याचन जिनकी नियति बनी अपमान 

कहूँ  तो कैसे।

तन, मन, वंधक  जिनका  उपयोग 

पराए हाथों में,

यकृत हृदय कलेजा बिकता सामान 

कहूँ तो कैसे।

होंठ खुले तो विष तीर अनेकों भर 

जाएंगे आनन,

भूख यतिमी अनजानापन उनकी 

पहचान कहूँ तो कैसे।

आदर्शों की प्राण वायु दे जाती है

स्वांस श्लेष 

हैं बिन रोटी कपड़ा और मकान 

उनका हिंदुस्तान कहूँ तो कैसे।

उदय वीर सिंह।

शुक्रवार, 8 जुलाई 2022

इश्तिहार दे गया


 




....✍️


सुलझे हुए शहर में कोई  इश्तिहार दे गया।
थी  प्यार की  जरूरत वो हथियार दे गया।
उधड़ी हुई कमीज संग उलझा हुआ रफूगर,
टाँकने थे बटन कमीज के तलवार दे गया।
इस छोर से उस छोर तक बहती रहीं बेफिक्र
हवाओं  को  रोकने को कई दीवार दे गया।
ताजी ख़बसर में क्या है शरगोशियाँ लबों पे
बिखरे पड़े हैं दर-दर बासी अखबार दे गया।
उदय वीर सिंह।
7।7।22

सोमवार, 4 जुलाई 2022

हलाहल पीना है...

 







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कंपित मझधार सफ़ीना है।

सच बोल हलाहल पीना है।

तेजाबी बारिश का आलम

बे-चैन  परिंदे  दर  ढूंढ रहे,

पूछ  रहे  घर  कौन  हमारा,

पर  काशी  मौन मदीना है।

बेड़ी पांव हाथ हथकड़ियां

रांह  कंटीली  खंडित  पथ,

हैं आंसू स्रोत नीर के बनते,

अधरों  को  अपने सीना है।

उदय वीर सिंह।

शुक्रवार, 1 जुलाई 2022

हरियाली यूँ नहीं आयी


 




........यूँ नहीं आयी.✍️


पेड़ों के हर पात पर हरियाली यूँ नहीं आयी।

कांटों के बीच गुलाब पर लाली यूँ नहीं आयी।

अपने वजूद को ही दफ़्न कर दिया  मिट्टी में,

जड़ों के नाम कोरी  गुमनामी  यूँ नहीं आयी।

तूफानों की नफरत ने जलने न दिया पलभर

बुझे दीये झोपड़ों में रात काली यूँ नहीं आयी।

गुजर गए कितने जमाने मसर्रत के इंतजार में

अक़ीदरमंदों के  लबो से गाली यूँ नहीं आयी।

उदय वीर सिंह।


गुरुवार, 30 जून 2022

क्या बनना था ..

 





......✍️




क्या बनाना था इसे क्या बनाकर रख दिया।
फूल रखने थे जहां कांटे बिछाकर रख दिया।
हसरतों की छांव में कुछ पल बिताने की कशिश,
खोलना था द्वार को ताला लगाकर रख दिया।
दे दी दवा हकीम ने ख़ैरात की झोली समझ,
प्यास में मदिरा मिली पानी छिपाकर रख दिया ।
ढूंढते मंजिल मुसाफ़िर राह उनकी गुमशुदा,
राह में दीपक जलाया फिर बुझाकर रख दिया।
उदय वीर सिंह।

शनिवार, 25 जून 2022

सच्चा सरदार मिलता है


 





........✍️

नसीब से काफिलों को सच्चा 

सरदार मिलता है।

इम्तिहानों के बाद जमाने को 

एतबार मिलता है।

आसान नहीं है उतारना जहालत 

के पर्दों को,

दिलवालों की ही जिंदगी में सोणा 

प्यार मिलता है।

ख़ामोशियां इसरार का सबब बन

जाती हैं,

जब उठती है आवाज तो कामिल 

अधिकार मिलता है।

गिरवी जमीर से इंसाफ की उम्मीद 

बेमानी है,

हकपसंदों को सलीब कमज़र्फ को 

पुरस्कार मिलता है।

उदय वीर सिंह।

शुक्रवार, 17 जून 2022

बंजर होती संस्कृति (कहानी संग्रह)


 




🙏सतनाम श्री वाहेगुरु जी !

  " बंजर होती संस्कृति"

मेर नवीन कहानी संग्रह

प्रिय सुधीजनों, मित्रों, स्नेहियों!  खुशी के पल आपसे साझा करते हुए हर्षित हृदय से आप सबके स्नेह व सम्मान का ऋणी हूँ। 

  मेरे बहुप्रतीक्षित  नवीन कथा संग्रह " बंजर होती संस्कृति " का प्रकाशन हो ही गया। उसकी प्रतियां आज मुझे प्राप्त हुईं। पुस्तक  आवरण, संक्षिप्त विन्यास आप सबके अवलोकनार्थ संप्रेषित कर हृदय आह्लादित भावों से भर उठा। 

पुस्तक का प्रकाशन स्वनामधन्य प्रकाशन  " हंस प्रकाशन " से हुआ है। ख्यातिलव्ध प्रकाशन व माननीय प्रकाशक का हृदय से आभार  ।

    यह कथा संग्रह भी पूर्व रचना कृतियों की तरह आप सबके स्नेह से सिंचित होगा ऐसा मेरा दृढ़ विस्वास है। 

  मैं कितना आपके मानदंडों पर खरा उतरा हूँ ,आपकी आलोचना समालोचना, प्रतिक्रिया की मुझे प्रतीक्षा रहेगी। 

    पुनः सर्वोपरि श्री गुरुग्रंथ साहिब जी महाराज की छांव , गुरुशिक्षकों ,परिजनों पाल्यों, सम्बन्धियों मित्रों सुधि- पाठकों शभचिन्तकों को मेरा विनीत भाव से नमन व हृदय से आभार।

उदय वीर सिंह।

शनिवार, 11 जून 2022

दिन चैन के कमतर हुए...








.........✍️


आंसुओं  के ढेर  पर ही तामीर  मुर्दाघर हुए।

दीन की चाहत लिए आबाद इबादतघर हुए।

रहबरी शमशीर के हाथ जब भी काबिज हुई,

खून की नदियां बहीं दिन चैन के कमतर हुए।अपनी ही बुनियाद की मज़बूतियाँ भी देखना

पत्थर लगे थे शोध कर हिलने लगे जर्जर हुए।

न सहेजा न तराशा सब आकर्षण चला गया,

दामन भरे थे फूल से कैसे हाथ में पत्थर हुए।

जन्मदात्री है बिखराव की गुरुत्वाकर्षणविहीनता

जो  ग्रह  थे परिक्रमा में टूट  तीतर-बितर हुए।

देख लेते एक बार अपने घर की गिरती दीवार

बंद आंखें मुस्कराते रहे घर कंगूरे खंडहर हुए।

उदय वीर सिंह।

मंगलवार, 31 मई 2022

शीशे पर वार करते हो।






 .........✍️


अगर  तुम पत्थर पर ऐतबार करते हो।

एक  मुकद्दस  शीशे पर  वार करते हो।

टूट  कर बिखरने  का दर्द मामूली नहीं,

वादियों में खिजां का इंतजार करते हो।

भूख है तो आग से भी खेलना होता है,

आग से नहीं  रोटियों से प्यार करते हो।

उदय वीर सिंह।

रविवार, 29 मई 2022

बेजुबां नहीं हो....


 





.........✍️


अपनी लिखो मुकद्दर, 

लिखता रहा है  कोई।

मालिक हो अपने घर के 

रहता रहा है कोई।

बेजुबां नहीं हो तुम,

बेजुबां से हो गए हो,

खोलो भी अब जुबां को

कहता रहा है कोई ।

हालात से है वाकिफ़

दर्दे सफ़र तुम्हारा,

अपनी कहो जुबानी ,

कहता रहा है कोई।

ये बे-अमन की आग

बोई है किसने वाइज,

जलना था इसमें किसको,

जलता रहा है कोई।

उदय वीर सिंह।

शुक्रवार, 27 मई 2022

पुजारी देखता है....


 




......✍️

नफ़ा और नुकसान को व्यापारी देखता है।

रास्ता निज आराध्य का, पुजारी देखता है।

इशारों में मुकर्रर कर देता है सजा उनकी,

बेजुबानों की आखों में मदारी देखता है।

बिछाई जाल ऊपर दाने शीतल नीर भी,

घात लगाये बैठा दूर शिकारी देखता है।

मीर चश्मों से देखता क्या शेष झोपड़ी में,

मुफ़लिस प्यार से मीर की अटारी देखता है।

उदय वीर सिंह।